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मनोदशा कैसे बदलें
मनुष्य एकरूप नहीं होता । वह बदलता रहता है । उसके भाव बदलते हैं, मन बदलता है, मनोदशाएं बदलती हैं और मूड बदलता है । आज मूड शब्द बहुत प्रचलित है । प्रत्येक आदमी दूसरे का मूड देखकर ही बातचीत करना चाहता है । मूड का अर्थ है मनोदशा । भाव के साथ-साथ मनोदशाएं बदलती हैं, मुद्राएं बदलती हैं । कोई भी आदमी कभी एकरूप में नहीं मिलता । प्रातः काल प्रसन्न मुद्रा में है तो मध्याह्न में क्रुद्ध मिलेगा । प्रातः काल यदि शांत है तो सायंकाल भीषण ज्वार-भाटे में मिलेगा। कहा नहीं जा सकता कि आदमी कब कैसा बन जाए। इसलिए सोचना पड़ता है कि किस आदमी से कब काम लिया जाए। जब वह प्रसन्न मुद्रा में होता है तो बड़े से बड़ा काम सहजता से हो जाता है और जब वह अप्रसन्न मुद्रा या मूड में होता है तो आसान काम भी पहाड़ जैसा बन जाता है ।
मूड क्यों बिगड़ता है
आजकल एक विशेष रसायन पर बहुत खोज हो रही है । वह है 'ट्रिप्टोफेन' | यह सेराटोनिन का निर्माण करता है । आदमी का मूड बिगड़ता है । इसका मूल कारण है ट्रिप्टोफेन (TRVPTOPHAN) की कमी या सेरोटोनिन (SERATONAN) की कमी । यदि यह तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है तो न मूड बिगड़ता है, न भय लगता है। इससे पीड़ा सहन करने की क्षमता भी बढ़ती है । आज हल्की सी पीड़ा को सहना भी कठिन होता है । आदमी तत्काल डाक्टर की शरण में जाता है, मानो वह सहना भूल ही गया
। यह बड़ी समस्या है। यदि ट्रिप्टोफेन और सेरोटोनिन की मात्रा पर्याप्त रूप में होती है तो सहन करने की क्षमता बढ़ती है, पीड़ा को सहने की शक्ति बढ़ती है ।
अन्न और मन का संबंध
आहार के तीन प्रकार हैं- राजसिक आहार, तामसिक आहार ओर सात्विक आहार । जीवन का भोजन के साथ गहरा सम्बन्ध है । इसीलिए कहा गया -- जैसा खावे अग्न, वैसा होवे मन। अन्न और मन का सम्बन्ध गहरा है । दूसरे शब्दों में, अन्न और भावों का गहरा संबंध है । इसीलिए भोजन सम्बन्धी अनेक वर्जनाएं की गईं । तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए, मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना चाहिए, प्याज-लहसुन आदि का वर्जन
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