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________________ १३० चित्त और मन संकल्प और यथार्थ की दूरी समाप्त हो जाए। संक्लेश चिकित्सा जिस मंत्र के द्वारा जो कार्य संभव होता है, जिसका संकल्प किया और कालान्तर में वह यथार्थ बनकर प्रत्यक्ष हो गया-इस भूमिका में पहुंचकर ही मंत्र-चिकित्सा के द्वारा मन की बीमारियों को मिटाया जा सकता है। इस स्थिति में ही मन के संक्लेशों की चिकित्सा की जा सकती है। जब व्यक्ति का मन स्वस्थ होता है तब उसमें धर्म का अवतरण होने लगता है। यह सहज होता है, विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती। उस समय ऐसा लगता है कि किसी दिव्य-शक्ति का प्रकाश, प्रसाद या अनुग्रह अपने-आप बरस रहा है और आत्मा में प्रवेश कर रहा है। इसे हम किसी नाम से पुकारें। ईश्वर के कर्तृत्व में विश्वास करने वाला मान ले कि ईश्वर का प्रसाद बरस रहा है, अनुग्रह बरस रहा है । अपने आत्म-कर्तृत्व में विश्वास करने वाला मान ले कि आत्मा का जागरण हो रहा है, चैतन्यकेन्द्रों की सारी शक्तियां पूरे शरीर में अवतरित हो रही हैं। समाधान के सूत्र जब मन स्वस्थ, चेतना जागृत होती है, आघात और प्रतिघात का प्रभाव समाप्त हो जाता है तब व्यक्ति सभी प्रकार की परिस्थितियों में संतुलित रहेगा। परिस्थितियों का प्रभाव उस तक पहुंचेगा ही नहीं। समस्या अपने स्थान पर खड़ी रहेगी, व्यक्ति का स्पर्श नहीं कर पाएगी। उस व्यक्ति को यह स्पष्ट दर्शन हो जाएगा कि समस्या यह है और समाधान यह है । समस्याओं से आक्रांत होने वाले व्यक्ति, समस्याओं के नीचे दब जाने वाले व्यक्ति, समस्याओं का सही समाधान नहीं पा सकते। समस्याओं का समाधान वे ही व्यक्ति पा सकते हैं, जो समस्याओं को तीसरे व्यक्ति की भांति सामने खड़ा देखते हैं। यह रहा मैं, यह है मेरा मन और यह है समस्या । समस्याएं दरवाजे के बाहर खड़ी हैं, मैं भीतर हूं। इनका समाधान यह है। ऐसे व्यक्ति ही समस्याओं का समाधान दे सकते हैं। चोर और डकैत को 'घर में घुसने दें और चोरी-डकैती न हो, यह कैसे संभव हो, सकता है ? समस्याओं से मन आक्रांत करें और वह अस्वस्थ न हो, यह कैसे सम्भव हो सकता है ? हम समस्याओं से कहें-'याओं, यह रहा मन और यह रही मन की सारी सम्पदा । तुम उस पर छा जाओ।' ऐसी निमंत्रणा से समाधान कैसे संभव हो सकता है ? समस्याओं का समाधान तभी संभव लगता है जब हम उनको मन के भीतर प्रवेश न करने दें। समस्या समस्या के स्थान पर, खड़ी रहे तो समाधान प्राप्त हो जाता है। समस्या समस्या के स्थान पर, मन मन के स्थान पर और समाधान समाधान के स्थान पर। यह तभी संभव है जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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