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मानसिक स्वास्थ्य
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कि वह केन्द्र सक्रिय हुआ है। किन्तु एक चैतन्यकेन्द्र के सक्रिय होने पर सारे चैतन्य केन्द्र सक्रिय नहीं हो जाते। दूसरे चैतन्यकेन्द्र निष्क्रिय पड़े रहते हैं । यह कसौटी है कि जिस केन्द्र पर स्पंदनों का अनुभव हो, प्रकाश दिखे, वह चैतन्य केन्द्र सक्रिय हैं। जहां कुछ भी अनुभव नहीं होता, वह चैतन्यकेन्द्र निष्क्रिय हैं । जो सक्रिय हैं, उन्हें और अधिक सक्रिय बनाना और जो निष्क्रिय हैं, उन्हें सक्रिय बनाना, यह मंत्र-साधना के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण बात हैं। मंत्र के द्वारा ऐसा किया जा सकता है। मन के प्रकाश से उन केन्द्रों को प्रकाशित कर ऐसा किया जा सकता है। जब तक हमारे चैतन्यकेन्द्र सक्रिय नहीं होगे जब तक हमारी शक्ति के मूल स्रोत या प्राणधारा को स्वीकार करने वाले केन्द्र अपना काम नहीं करेंगे तब तक विद्युत् का पूरा प्रवाह हमें उपलब्ध नहीं होगा। ऐसी स्थिति में मन भी शक्तिशाली नहीं बनेगा । मन को शक्तिशाली बनाने के लिए चैतन्यकेन्द्रों पर ध्यान और चैतन्यकेन्द्रों पर मंत्र की आराधना-दोनों बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं। शब्द को सोमा
अपान प्राणधारा से वाणी प्रस्फुटित होती है अथवा शक्तिकेन्द्र से वाक् प्रस्फुटित होती है। वह ध्वनित नहीं होती, उच्चारित नहीं होती किन्तु उसका पहला प्रस्फुटन शक्तिकेन्द्र से होता है, अपान प्राण की मर्यादा में होता है। बीज अंकुरित नहीं होता किन्तु उसका प्रस्फुटन हो जाता है । मन्त्र की उपासना करने वाले व्यक्ति सबसे पहले अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं-शक्तिकेन्द्र पर । वे अपने मन का नियोजन शक्तिकेन्द्र पर करते हैं । जब शक्तिकेन्द्र से वाक् का, मन्त्र के शब्दों का प्रस्फुटन शुरू होता है तब वह आरोहण करते-करते स्वास्थ्य केन्द्र, तैजसकेन्द्र, आनन्दकेन्द्र, प्राणकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्र तक पहुंचता है, विशुद्धि केन्द्र तक आतेआते शब्द की सीमा समाप्त हो जाती है। आगे वह मंत्र प्राण की सीमा में, मन की सीमा में चला जाता हैं, सक्रियता उत्पन्न करता है और सारे तंत्र को शक्तिशाली बना देता है। मंत्र के तीन तत्त्व
मंत्र का पहला तत्त्व है-शब्द और शब्द से अशब्द । शब्द अपने स्वरूप को छोड़कर प्राण में विलीन हो जाता है, मन में विलीन हो जाता है तब वह अशब्द बन जाता हैं।
जब तक मंत्र के तीनों तत्त्व-शब्द, संकल्पशक्ति और साधना का समुचित योग नहीं होता तब तक मंत्रसाधक सत्य-संकल्प नहीं होता। सत्य संकल्प का अर्थ है-संकल्प की सिद्धि कर लेना, संकल्प का सफल हो जाना, संकल्प का यथार्थ बन जाना । कल्पना से संकल्प और संकल्प से यथार्थ ।
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