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चित्त और मन
केन्द्रित करें और इसी स्थान से मन्त्र का जाप चले। उच्चारण नहीं, केवल मंत्र का दर्शन, मंत्र का साक्षात्कार, मंत्र का प्रत्यक्षीकरण। इस स्थिति में मंत्र की आराधना से वह सब कुछ उपलब्ध होता है जो उसका विधान है। मंत्र इस भूमिका तक पहुंचकर ही कृतकृत्य होता है। यह उसके आरोहण की भूमिका है। मानसिक जप की भूमिका : मानसिक स्वास्थ्य
मानसिक जप की भूमिका उपलब्ध हुए बिना हम मन की स्वस्थता की भी पूरी परिकल्पना नहीं कर सकते । मन का स्वास्थ्य हमारे चैतन्यकेन्दों की सक्रियता पर निर्भर है। जब सारे चैतन्यकेन्द्र-शक्तिकेन्द्र, स्वास्थ्यकेन्द्र, तेजसकेन्द्र, आनन्द्र केन्द्र, विशुद्धिकेन्द्र, प्राणकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्रसक्रिय हो जाते हैं तब हमारी शक्ति का स्रोत फूटता है और मन शक्तिशाली बन जाता है। अन्यथा मन शक्तिशाली नहीं बनता। मन पर निरन्तर आघात और प्रतिघात होते रहते हैं। सामाजिक, पारिवारिक और राजनीतिक वातावरण में ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं जिनसे मन आहत होता है, प्रतिहत होता है । इतने आघात-प्रतिघात के बीच रहता हुआ मन स्वस्थ कैसे हो सकता है ? मन को आघातों से बचाने पर ही वह शक्तिशाली और स्वस्थ रह सकता है। अन्यथा मानसिक स्वास्थ्य की बात कोरी कल्पनामात्र रह जाती है। अपेक्षित है दीर्घकालीन साधना
मन पर होने वाले आघातों से बचने का एक ही उपाय है-हम अपने चैतन्यकेन्द्रों को सक्रिय करें। चैतन्यकेन्द्रों को सक्रिय करने की भी प्रक्रिया है। तैजसकेन्द्र पर ध्यान किया, मन का प्रकाश नाभि से सुषुम्ना तक, पृष्ठभाग तक फैलाया। इससे मन की एकाग्रता सधेगी और सारा तेजस केन्द्र सक्रिय हो जायेगा। जहां मन जाता है वहां प्राण का प्रवाह भी जाता है। जिस स्थान पर मन केन्द्रित होता है, प्राण उस ओर दौड़ने लगता है। जब मन को प्राण का पूरा सिंचन मिलता है और शरीर के उस भाग के सारे अवयवों, अणुओं और परमाणुओं को प्राण और मन-दोनों का सिंचन मिलता है तब वे सक्रिय हो जाते हैं। जो कण सोये हुए हैं, वे जाग जाते हैं, शक्ति बढ़ जाती है। हम अतिकल्पना न करें कि दो-चार-दस दिन में चैतन्य-केन्द्रों पर ध्यान करने से उनकी सक्रियता बढ़ जायेगी। उसके लिए दीर्घकालीन साधना अपेक्षित है। महत्त्वपूर्ण तथ्य
__ कोई व्यक्ति दर्शनकेन्द्र पर ध्यान करता है जब उसे वहां स्पन्दनों का स्पष्ट अनुभव होता है और प्रकाश दिखने लगता है तब मानना चाहिए
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