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________________ नसिक स्वास्थ्य १२७ ल्पना भी नहीं की जा सकती। वह मन स्वस्थ होता है, जिसमें प्रसन्नता का अजस्र स्रोत फूट पड़ता है, जिसमें निर्ममत्व भाव का विकास है, जिसमें हुरे विचार नहीं आते, जिसमें उत्तेजना नहीं आती, जिसको वासना नहीं ताती। महर्षि चरक ने स्वास्थ्य के लिए कुछ मानदंड स्थापित किए हैं, उनमें जितेन्द्रियता और मन की प्रसन्नता को भी माना है। शारीरिक वास्थ्य के अनेक मानदंड हैं किन्तु ये दो मानदंड मानसिक स्वास्थ्य के हैं । प्रश्न मंत्र की आराधना का मन का स्वास्थ्य प्राणधारा के साथ जुड़ा हुआ है । जब प्राण को सक्रिय और निर्मल बनाना है तो फिर नमस्कार महामंत्र की साधना प्राण के पांच बीजों के साथ करनी चाहिए । प्राणधारा के पांच बीज हैं-मैं, पैं, व, र, । इन बीजाक्षरों के साथ महामन्त्र की आराधना की जाती है। मंत्र के तीन तत्त्व हैं-शब्द, संकल्प और साधना । शब्द मन के भावों को वहन करता है। मन के भाव शब्द के वाहन पर चढ़कर यात्रा करते हैं। कोई विचार-संप्रेषण (टेलीपेथी) का प्रयोग करे, कोई सजेशन या ऑटो सजेशन का प्रयोग करे, उसे सबसे पहले ध्वनि का, शब्द का सहारा लेना ही पड़ता है। वह व्यक्ति अपने मन में भावों को तेज ध्वनि में उच्चारित करता है। ध्वनि की तरंगें तेज गति से प्रवाहित होती हैं। फिर वह उच्चारण को मध्यम करता है, धीरे-धीरे मंद कर देता है। पहले होंठ और कंठ अधिक सक्रिय थे, वे मंद हो जाते हैं, ध्वनि मंद हो जाती है। होंठ तक आवाज पहुंचती है पर बाहर नहीं निकलती। जोर से बोलना या मंद स्वर में बोलना -दोनों कठ के प्रयत्न हैं, स्वर-यंत्र के प्रयत्न हैं। परिणति कब ? ___ कंठ का प्रयत्न शक्तिशाली होता है किन्तु बहुत शक्तिशाली नहीं होता। उसका परिणाम आता है किन्तु वह परिणाम नहीं आता जिसकी हम मंत्र से उम्मीद करते हैं। हम मानते हैं कि मंत्र से यह हो सकता है, वह हो सकता है। वैसा कंठध्वनि का परिणाम नहीं आता, तब निराशा आती है और मन्त्र के प्रति संशय हो जाता है। मन्त्र की वास्तविक परिणति या मूर्धन्य परिणाम तब आता है जब कंठ की क्रिया समाप्त हो जाती है और मन्त्र हमारे दर्शन-केन्द में पहुंच जाता है। यह मानसिक क्रिया है । जब मंत्र की मानसिक क्रिया होती है, मानसिक जप होता है तब न कंठ की क्रिया होती है, न जीभ हिलती है, न होंठ और दांत हिलते हैं। स्वर-यंत्र का कोई प्रकंपन नहीं होता। मन दर्शनकेन्द्र में केन्द्रित हो जाता है। जो व्यक्ति मंत्र का मानसिक अभ्यास करना चाहें वे अपनी आंखों की कीकी को थोड़ा ऊपर उठाएं, भृकुटि को भी ऊपर उठाएं, मन की पूरी शक्ति को दर्शनकेन्द्र पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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