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________________ मानसिक स्वास्थ्य १२५ मन-ही-मन दुःखी हो जाते और यह सोचते कि लोगों के मन में मेरी तस्वीर कुछ और है और मैं कुछ और हूं। यदि जमीन फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं। आचार्य भिक्षु ने सोचा-'यदि मेरे पास इतना ठाट-बाट, हाथीघोड़े होते तो भीखन की इतनी महिमा नहीं होती। मैं अकेला हूं इसीलिए यह सारी महिमा है। जो व्यक्ति अपने में अकेला होता है और अपने अकेलेपन का अनुभव करता है, वह स्वयं अपनी महिमा का अनुभव करता है, दूसरे भी उसकी महिमा का अनुभव करते हैं।' यह था आचार्य भिक्षु का स्वस्थ चिन्तन । आघात का परिणाम अनेक बीमारियां मानसिक दुर्बलताओं के कारण पनपती हैं। एक भाई को मैंने पूछा-तुम स्वस्थ थे। हट्टे-कट्टे थे। तुम्हारा शरीर निगड था। ऐसी स्थिति कैसे हो गई ? पूरा शरीर थका मांदा सा लगता है। क्या बात उसने कहा-मेरे परिवार का एक सदस्य अत्यन्त बीमार हो गया था। उसकी स्थिति को देखकर मुझे बहुत धक्का लगा। वह न चल सकता है न ऊठ-बैठ सकता है, न करवट ही बदल सकता है। ऐसी अवस्था से मुझे भयंकर चोट पहुंची। उसी दिन से मेरी यह स्थिति हो रही है। न खाया हुआ पचता है और न कोई पदार्थ अच्छा लगता है। मैं बीमार हो गया हूं। महत्त्वपूर्ण चिकित्सा-सूत्र यह मन की बीमारी है, शरीर की नहीं। दूसरों पर आरोप लगाने के भयंकर परिणाम होते हैं। दूसरों पर आरोप लगाने वाला, दूसरों पर आरोप लगाने से पूर्व स्वयं आरोपित हो जाता है और अनजाने ही मन उस बात को इतना पकड़ लेता है कि वह व्यक्ति अपराधी की भांति मन ही मन घुलने लग जाता है। यह एक प्रकार का कैन्सर है । कैन्सर का, अन्तर् व्रण और शल्य का पता नहीं चलता पर भीतर ही भीतर वह विकृति पैदा कर देता है और एक दिन जब विस्फोट होता है तब ज्ञात होता है कि कितना भयंकर परिणाम हुआ है। __ मन की बीमारियां अपने आपको न देखने के कारण पैदा होती हैं। 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो'--यह एक छोटा-सा सूत्र लगता है, किन्तु यह महत्त्वपूर्ण चिकित्सा-सूत्र है, कारगर औषधि है। यदि यह एक सूत्र हृदयंगम हो जाता है तो ध्यान समझ में आ जाता है, ज्ञान समझ में आ जाता है, सारी विद्याएं समझ में आ जाती हैं, सारी चिकित्सा पद्धतियां और मेथड्स हमारे हाथ लग जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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