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चित्त और मन
स्वास्थ्य भी इष्ट नहीं है। कैंसर की बीमारी, अल्सर की बीमारी, श्वास दमा की बीमारी — इस प्रकार की बहुत सारी बीमारियां मन से जुड़ी हुई बीमारियां हैं। मन में एक प्रकार की भावना जागती है और बीमारी पैदा हो जाती है। ऐसे रोगी हमारे पास आए जो डॉक्टर के पास गए, सारा निदान कराया । आज के जितने उपकरण हैं, उनसे सारा चेक-अप करा लिया किन्तु बीमारी पकड़ में नहीं आई । डाक्टर कहता है— कोई बीमारी नहीं और बीमारी भोगी जा रही । ऐसी बीमारी डॉक्टर की पकड़ में नहीं आएगी, यन्त्रों की पकड़ में नहीं आएगी। यह मानसिक बीमारी है और निदान किया जा रहा है शरीर का । कैसे पकड़ में आएगी ? स्वस्थता मन और तन की
यह दृष्टिकोण बने — बीमारी की खोज मन में की जाए। हम देखें - कोनसी वृत्ति मन में जाग रही है, कौनसी वृत्ति प्रबल है, सक्रिय है और उसके द्वारा किस प्रकार की बीमारी पैदा हो रही है । मानसिक स्वास्थ्य को पाने के लिए आवेशों पर, क्षोभ और चंचलता पर नियंत्रण आवश्यक है । कोई भी घटना सुनी और मन क्षुब्ध हो गया । तालाब में कंकड़ फेंका और तरंग उठ गई । उठती रहेगी तो वह पानी कभी शांत नहीं होगा । इस प्रकार बाहरी घटना एक तरंग पैदा कर देती है तो मन स्वस्थ नहीं रह सकता और मन स्वस्थ नहीं रहता तो फिर तन भी स्वस्थ नहीं रह सकता । इस सचाई का स्पष्ट अनुभव दृष्टिकोण के बदले बिना संभव नहीं लगता ।
स्वस्थता का रहस्य : स्वस्थ चितन
चिन्तन से व्यक्ति को परखा जा सकता है, व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया जा सकता है ।
स्वस्थ चिन्तन कैसे होता है, इसे हम समझें । आचार्य भिक्षु जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । संयोगवश कोई साधु पास में नहीं था । वे अकेले ही थे । उस मार्ग से एक काफिला निकला । कुछ लोग पास में आए। उन्होंने वंदना कर पूछा - 'महाराज आप कौन हैं ? आपका नाम क्या है ।' आचार्य भिक्षु ने कहा- 'मैं मुनि हूं । मेरा नाम है भीखन ।' लोग एक साथ बोल पड़े - 'अरे, भीखनजी ! हमने आपको बहुत प्रशंसा सुनी है। गांव-गांव में आपकी महिमा के गीत गाए जा रहे हैं। हमारे मन में तो आपकी तस्वीर ही दूसरी थी । हमने सोचा था -- कितने बड़े सन्त होंगे। उनके साथ संतों की बड़ी टोली होगी । उनके पास हाथी, घोड़े, नोकर-चाकर आदि होंगे, बड़ा ठाट-बाट होगा | परन्तु आप तो अकेले ही हैं। जमीन पर बैठे हैं । न नौकर न चाकर, न घोड़ा, न हाथी । सामान्य व्यक्ति की भांति बैठे हैं ।'
आचार्य भिक्षु का चिन्तन स्वस्थ था । यदि चिन्तन अस्वस्थ होता तो
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