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मानसिक स्वास्थ्य
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विकृतियों के कारण, मस्तिष्कीय दुर्बलता के कारण ये बीमारियां पैदा होती हैं। किन्तु अब नयी खोजों से यह पता चला है-अपोषण और कुपोषणये दोनों मानसिक बीमारियों के लिए काफी जिम्मेदार हैं। पूरा पोषण नहीं मिलता है तो स्नायविक दुर्बलता होती है, मानसिक रोग पैदा होते हैं। कुपोषण से भी मानसिक रोग पैदा होते हैं। न अपोषण न कुपोषण
भोजन का मतलब कोरा पेट भरना ही नहीं है। कोरी रोटियां ही खा लीं, पेट तो भर जाएगा किन्तु कुपोषण हो जाएगा, ठीक पोषण नहीं होगा। शरीर को जिन तत्त्वों के संतुलन की जरूरत है, जो तत्त्व शरीर में पूरा कार्य करते हैं, उनके सम्यग् आहरण से शरीर और मन को पोषण मिलता है। शरीर के पूरे यन्त्र को संचालित करने के लिए कार्बोहाइड्रेट भी चाहिए, चिकनाई भी चाहिए, लवण भी चाहिए, क्षार भी चाहिए । विटामिन सार तत्त्व भी चाहिए। अगर एक नहीं मिलता है तो उससे सम्बन्धित अंग निकम्मा हों जाता है। शरीर का श्रम करने वाला व्यक्ति यदि अन्न ज्यादा खाता है तो कठिनाई पैदा नहीं होती। किन्तु केवल अन्न से मानसिक विकास की स्थिति पूरी नहीं बनती। मानसिक काम करने वाला, बौद्धिक श्रम करने वाला कोरे अन्न पर रहे, उसे स्वस्थ पोषण न मिले तो मानसिक अवस्था गड़बड़ा जाएगी। इसलिए संतुलन यानी न अपोषण और न कुपोषण किन्तु सम्यक् पोषण । यह आज मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानसशास्त्रियों के द्वारा संभव हो गया है। इस स्थिति में आहार पर अनेक कोणों से विचार करना जरूरी है। स्वास्थ्य का आधार : मानसिक स्वास्थ्य
आदमी शरीर को बहुत स्वस्थ रखना चाहता है । आदमी चाहता हैशरीर स्वस्थ रहे । जब तक यह सचाई समझ में नहीं आएगी कि चित्त स्वस्थ नहीं है और मन स्वस्थ नहीं है, तब तक शरीर स्वस्थ रह ही नहीं सकता। इस सचाई का साक्षात्कार होना चाहिए। यह बहुत बड़ी सचाई है। आज चिकित्सा विज्ञान और आयुर्विज्ञान में भी इस सचाई को स्वीकारा गया है कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक स्वास्थ्य आवश्यक है। यह बात बहुत स्पष्ट हो चुकी है-बहुत सारी बीमारियां हमारे मन के कारण होती हैं । बड़ा आश्चर्य होता है । आदमी अपने को तो स्वस्थ रखना चाहता है किन्तु उद्वेग करता है, आवेश में आता है और घृणा भी करता है। वह दूसरों की निन्दा भी करता है, दूसरों को सताता भी है । ये सारी मानसिक प्रवृत्तियां करता है और अपने आपको स्वस्थ भी रखना चाहता है, यह कैसे संभव है। मन से जुड़ी बीमारियां
जिस व्यक्ति को अपना मानसिक स्वास्थ्य इष्ट नहीं है, उसे शारीरिक
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