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चित्त और मन
सुविधापूर्वक हो सके । किन्तु जब यथार्थ सामने आता है तब बहुत कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं। मन-मुटाव होता है, लड़ाइयां होती हैं, मानसिक अशांति होती है और वह वर्षों तक बनी रहती है । मैंने एक घटना सुनी-एक व्यक्ति अपनी लड़की के लिए दूसरे गांव में लड़का देखने गया। वहां पहले से ही षड्यंत्र रचा हुआ था । एक कमरे से रुपयों के टनकार की आवाज आ रही थी। वह टनकार क्षण भर के लिए भी बन्द नहीं हो रही थी। लड़की वालों ने सोचा--कितना धन है इनके पास ! कितने समय से ये रुपये गिन रहे हैं ! बहुत संपन्न लगते हैं । विवाह की बात तय हो गयी। ठीक समय पर विवाह हो गया। फिर वास्तविकता का पता चला। दोनों परिवार वाले एक-दूसरे से कट गए, संबंधों में दरारें पड़ गयीं।
सामाजिक संदर्भ में अपने-आपको अयथार्थरूप में प्रस्तुत करना अपनेआपको धोखा देना है, दूसरे को धोखा देना है। इससे अनेक कठिनाइयां और समस्याएं पैदा हो जाती हैं । आयुर्वेद में स्वास्थ्य
__ आयुर्वेद में शरीर के स्वास्थ्य को ही स्वास्थ्य नहीं माना है, मन के स्वास्थ्य को भी स्वास्थ्य माना है। प्रश्न आया-स्वस्थ कौन ? इसके उतर में कहा गया -
समाग्निः समदोषश्च, समधातुमलक्रियः ।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः, स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥ जिस व्यक्ति के शरीर की धातुएं सम हैं, विषम नहीं हैं, अग्नि सम है, विषम नहीं है, दोष और मल की क्रिया भी सम है, वह स्वस्थ है। . जिसकी इन्द्रियां उच्छृखल नहीं हैं, जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण है, जो प्रसन्न
आत्मा है वह स्वस्थ है। जिसकी शरीर की धातुएं और मल-दोष सम हैं किन्तु मन की प्रसन्नता नहीं है, निर्मलता नहीं है तो वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो सकता । जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं है, वह स्वस्थ नहीं हो सकता। स्वस्थ रहने के लिए शरीर की क्रियाओं का ठीक होना और मन की प्रसन्नता का होना-दोनों आवश्यक है। आहार का स्वास्थ्य पर प्रभाव
भोजन का संबंध हमारी वृत्तियों से अधिक है। कषाय, क्रोध, अहंकार, लालच से भी भोजन का बहुत सम्बन्ध है। एक प्रकार का भोजन करने वाला व्यक्ति बहुत क्रोधी बन जाता है । एक प्रकार का भोजन करने वाला व्यक्ति लालची बन जाता है । वृत्ति के साथ भोजन का बहुत गहरा सम्बन्ध जुड़ा हुआ है।
पहले मानसशास्त्री और मानसचिकित्सक मानते थे कि मानसिक
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