________________
१२१
मानसिक स्वास्थ्य सहिष्णुता का विकास
मानसिक स्वास्थ्य की साधना का चौथा सूत्र है-सहिष्णुता का विकास । सहिष्णुता को विकसित किए बिना कोई व्यक्ति संतुलित जीवन नहीं जी सकता। जो व्यक्ति सहिष्णु नहीं होता वह अपने मन को सदा दुःख में डाले रहता है। कांच का बर्तन कब फूट जाए, कहा नहीं जा सकता। असहिष्णु व्यक्ति का मन कब टूट जाए, कहा नहीं जा सकता। सदा आशंका बनी रहती है। थोड़ी-सी कोई स्थिति आती है और तत्काल मन बेचैन हो उठता है। व्यक्ति ध्यान करने बैठता है। गर्मी के दिन होते हैं और पंखा अचानक बंद हो जाता है। मन ध्यान से हट कर पंखे में उलझ जाता है । मन तड़पने लगता है। मन इतना आकुल-व्याकुल हो जाता है कि बेचारा ध्यान कहीं अटक जाता है। शाश्वत नहीं हैं सुख-सुविधाएं
प्रश्न है-यह क्यों होता है ? यह इसीलिए होता है कि व्यक्ति ने सहिष्णुता का मूल्यांकन नहीं किया। हजारों पदार्थों के उपलब्ध होने या न होने पर भी सहिष्णुता अपना मूल्य नहीं खोती। जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हों, किन्तु वे शाश्वत नहीं हैं। यह सार्वभौम नियम है कि वे प्राप्त होती हैं और दूर हो जाती हैं। जिस क्षण में वे छूटती हैं उस क्षण में क्या बीतती है, यह वही व्यक्ति जान सकता है, जिसने सहिष्णुता को नहीं समझा है। जिसने सहिष्णुता को साध लिया, उसके लिए सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, सुविधा-असुविधा कोई अर्थवान् नहीं होते। ऐसा व्यक्ति अपने मन और शरीर का ऐसा निर्माण कर लेता है, जिससे वह हर स्थिति को झेलने में समर्थ और सक्षम होता है। जब हर स्थिति को झेलने का सामर्थ्य नहीं होता तब अनेक समस्याएं उठती हैं, व्यक्ति घबरा जाता है। जो व्यक्ति कठिनाइयों में पला-पुसा, फिर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हुईं, आराम में जीने लगा। ऐसा व्यक्ति पुनः कठिनाइयां आने पर विचलित नहीं होती। जिस व्यक्ति ने आग को झेला है, वह हर आंच में से गुजरने में सफल हो जाता है। किन्तु जो व्यक्ति आराम में रहा, जिसने कभी दुःख-दुविधाओं को नहीं देखा, वह व्यक्ति आकस्मिक कठिनाइयों में टूट जाता है। वह उनको सहन नहीं कर सकता। इसलिए विपदाओं को झेलने का अभ्यास करना चाहिए। यथार्थ प्रस्तुति
मानसिक स्वास्थ्य की साधना का पांचवां सूत्र है—अपने-आपको यथार्थरूप में प्रस्तुत करना। समाज के सन्दर्भ में व्यक्ति अपने-आपको यथार्थरूप में प्रस्तुत करना नहीं चाहता । वह अपने-आपको बड़े के रूप में प्रस्तुत करता है जिससे कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़े और वैवाहिक सम्बन्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org