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________________ १२० चित्त और मन उसका श्रेय स्वयं लेना चाहेगा और यदि परिणाम बुरा है तो उसका श्रेय दूसरे पर झंडेल देगा । यह साहसहीनता है। इससे मन मलिन होता है, बीमार होता है। सत्य के प्रति समर्पण मानसिक स्वास्थ्य की साधना का तीसरा सूत्र है--सत्य के प्रति समर्पण । सत्य की व्याख्या बहुत ही जटिल है। किसे सत्य माना जाए ? हमें इसमें उलझना नहीं है। सत्य का अर्थ हैं—सार्वभौम नियम (युनिवर्सल ट्रथ) मृत्यु एक सार्वभौम नियम है, यह एक बड़ी सचाई है। कोई भी इसे नहीं टाल सकता। इस दुनिया में तीर्थंकर भगवान्, अर्हत्, मसीहा आदि-आदि अनेक शक्तिशाली व्यक्ति हुए हैं, जो इस शाश्वत नियम को नहीं टाल पाए है। कोई भी इस सार्वभौम नियम का अपवाद नहीं बन सकता। कोई अमर नहीं रह सकता। कोई भी प्राणी संदेह अमर नहीं होता। विदेह में जो अमर होता है, वह हमारे सामने नहीं है । मृत्यु एक सचाई हैं। कर्म एक सचाई है। काल एक सचाई है। वस्तु स्वभाव एक सचाई हैं। जो भी सार्वभौम सचाइयां हैं, व्यापक सत्य हैं, उनके प्रति जो समर्पित रहता है, वह 'मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रह सकता है । दुःखी होने का अर्थ - एक व्यक्ति के पास एक घड़ी थी। वह गुम हो गयी। व्यक्ति रोने लगा । उसका विलाप कई दिनों तक चलता रहा। उसके मुंह पर उदासी छा गई । जो अरबपति हैं, करोड़पति हैं, उनके जेब से भी यदि सौ रुपये गुम हो जाते हैं तो उनका सारा दिन उदासी में बीतता है। इसका मतलब है कि वे सचाई के प्रति समर्पित नहीं हैं। वे इस सचाई को नहीं जानते-जहां संयोग है वहां वियोग निश्चित है। हम इस सचाई के प्रति समर्पित हों-'संयोगाः विप्रयोगान्ताः' संयोग विप्रयोग से जुड़े रहते हैं। जिस क्षण में संयोग होता है वहीं से वियोग का सिलसिला भी चालू हो जाता है। जन्म के साथ ही मृत्यु का क्षण भी प्रारंभ हो जाता है। जन्म का अन्तिम परिणाम है मृत्यु । जन्म हो और मृत्यु न हो, यह कभी संभव नहीं है। जो इस सचाई के प्रति समर्पित नहीं होते, वे असंतुलित और विकृत हो जाते हैं। उनका मन अस्वस्थ हो जाता है। मानसिक रोग आक्रान्त कर लेता है। जो मृत्यु की सचाई को जानते हैं वे किसी के मर जाने पर अपना संतुलन नहीं खोते । कुछ दुःख होता है किन्तु वह भी स्थायी नहीं रहता, क्षणिक होता है। जिन्होंने इस शाश्वत सत्य के प्रति समर्पण नहीं किया, वे मृत्यु की घटना से विचलित हो जाते हैं और अपने मन को रोगी बना देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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