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________________ मानसिक स्वास्थ्य ११६ करता है और शरीर मन को प्रभावित करता है। किन्तु मन का प्रभाव शरीर पर गहरा होता है। यदि मन स्वस्थ है तो शरीर स्वस्थ होगा ही। मन का स्वास्थ्य समता से संबंधित है। यदि मन में समता है तो मानसिक स्वास्थ्य होगा और यदि समता नहीं है तो मन कभी स्वस्थ नहीं हो सकता। समता की साधना के जो सूत्र हैं, वे ही मानसिक स्वास्थ्य की साधना के सूत्र हैं । मानसिक स्वास्थ्य का पहला सूत्र मानसिक स्वास्थ्य की साधना का पहला सूत्र है-अपने-आपको जानो। जो व्यक्ति अपने-आपको नहीं जानता, वह मन से स्वस्थ नहीं होता। मानसिक स्वास्थ्य के लिए अपने-आपको जानना बहुत जरूरी है। जो अपनी क्षमता को नहीं जानता, अपनी अक्षमता को नहीं जानता, वह व्यक्ति मन से स्वस्थ कैसे हो सकता है ? हमारे में अपने-आपको जानने की योग्यता है, क्षमता है किन्तु हमने कभी अपने-आपको जानने का प्रयत्न नहीं किया । व्यक्ति सक्षम होते हुए भी अक्षम अनुभव करता है, मन अनुताप से भर जाता है । अपने प्रति अभद्र व्यवहार देखकर व्यक्ति भभक उठता है, मन में असंतोष उभर आता है क्योंकि वह अपनी अक्षमता को नहीं जानता। जब वह अपनी अक्षमता को नहीं जानता तब वह दूसरों को ही देखता है, स्वयं को नहीं देख पाता। पिता के दो पुत्र हैं। पिता एक पुत्र को दायित्व सौंप देता है तब दूसरे के मन में असंतोष की ज्वाला उभर आती है। यह इसलिए उभरती है कि वह यह नहीं जानता कि वह इस दायित्व के लिए अक्षम है। जो व्यक्ति अपने-आप को नहीं जानता, वह अपने मन में सदा जलने वाली आग सुलगा देता है और उसमें सदा जलता रहता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं को योग्यता और अयोग्यता का निरीक्षण बहुत आवश्यक है। परिणामों की स्वीकृति मानसिक स्वास्थ्य की साधना का दूसरा सूत्र है-परिणामों को स्वीकृति । हम प्रवृत्ति करते हैं किन्तु उसके परिणामों को स्वीकार नहीं करते और इसीलिए मन में असंतोष और अशांति पैदा होती है। कृत के परिणामों से जहां अपने-आपको बचाने की मनोवृत्ति होती है, वहां मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है। रोग का एक कीटाणु उसमें घुस जाता है। परिणाम को स्वीकार करने के लिए मन बहुत शक्तिशाली चाहिए। जो मन शक्तिहीन होता है, वह कभी परिणामों को स्वीकार नहीं कर सकता। हमें अच्छे या बुरे सभी प्रकार के परिणामों को स्वीकारना चाहिए। इसमें कभी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। जिस व्यक्ति में परिणामों को स्वीकार करने का साहस नहीं होता, भय होता है। वह परिणामों को दूसरे के माथे पर मढ़ देता है, स्वयं बच निकलना चाहता है। यदि परिणाम अच्छा है तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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