SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानसिक स्वास्थ्य ११७ मानसिक चिन्ता, निराशा, भय, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य आदि मानसिक आवेगों से हृदय रोग उत्पन्न होता है। भय, चिन्ता, क्रोध, मद, मोह, मात्सर्य आदि मानसिक आवेगों से पुरुष का वीर्य पतला हो जाता है और स्त्री के रजोविकार का रोग उत्पन्न हो जाता है। मानसिक चिन्ता, अशान्ति, उद्विग्नता और क्षोभ के कारण क्षयरोग उत्पन्न होता है। ईर्ष्या और द्वेष यकृत् और तिल्ली को प्रभावित करते है । क्रोध और घृणा से गुर्दे विकृत होते हैं तथा रक्त विषैला बनता है। चिन्ता और उदासीनता से फेफड़े दुर्बल होते है, मस्तिष्क विकृत और रक्त दूषित होता है। विषय-वासना की प्रबलता से वीर्य-विकार-प्रमेह आदि मनोविकारों की दशा में खाये जाने वाले अन्न का समुचित परिपाक नहीं होता। ___इनकी उत्पत्ति का कारण यह है कि मानसिक आवेग शरीर की रोगप्रतिरोधक शक्ति को नष्ट कर डालते हैं। हमारे शरीर में दो पाचक रस रहते है-लवणांग (हाइड्रोक्लोरिक) और पेप्सीन । द्वेष, ईर्ष्या, भय, शोक, क्लेश, निन्दा, घृणा आदि मानसिक आवेगों से प्रभावित अवस्था में पाचक रस अल्प मात्रा में बनते हैं इसलिए शरीर और मन शक्तिहीन हो जाते हैं। चिन्ता, शोक, भय, क्रोध, लोभ आदि से अरुचि और अजीर्ण रोग होता है। चिन्ता आदि से आमाशयिक स्राव कम होता है और क्षुधा नष्ट हो जाती है। ___ हमारा जीवन प्रवृत्ति बहल है। जहां प्रवृत्ति होती है वहां वेग होता है । वह दो प्रकार का होता है-शारीरिक और मानसिक । शारीरिक वेग तेरह प्रकार के हैं-वात (उर्ध्ववात, अधोवात), मल, मूत्र, छींक, प्यास, भूख निद्रा, काम, श्रमजनितश्वास, जमुहाई, अश्रु, वमन और शुक्र । इनका वेग धारण करने से रोग उत्पन्न होते हैं इसलिए इनका निषेध है । रोग के चार प्रकार आयुर्वेद में रोग चार प्रकार के माने गये हैं :आगन्तुक शारीरिक मानसिक स्वाभाविक आगन्तुक रोगों का हेतु बाह्य उपकरण-शस्त्र आदि हैं। शारीरिक रोग हीन, मिथ्या और अतिमात्रा में प्रयुक्त अन्न-पान के कारण कुपित (या विषम) हुए वात, पित्त, कफ, रक्त या इनके मिश्रण से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy