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मानसिक स्वास्थ्य
आवेग : उप-आवेग
गरुड़ ने काकभुशुंडि से कहा - "मैं मानसिक रोगों के बारे में जानना चाहता हूं।" इस जिज्ञासा के उत्तर में काकभुशुंडि ने बतलाया - ' - "गरुड़ ! सब रोगों का मूल मोह है । उससे अनेक पीड़ाएं उत्पन्न होती हैं ।"
मनुष्य के शरीर में तीन दोष होते हैं - वात, कफ और पित्त । मानसिक जगत् में काम वात, लोभ कफ और क्रोध पित्त है । जब ये तीनों कुपित होते हैं तब सन्निपात का रोग प्रकट हो जाता है। ममता दाद है । ईर्ष्या खुजली है । हर्ष और विषाद गठियावात हैं । दूसरों का सुख देखकर जलना क्षयरोग है । मन की कुटिलता और दुष्टता कोढ़ हैं। दंभ और मान नहरूआ हैं | तृष्णा जलोदर है । मात्सर्य और अविवेक ज्वर हैं ।
मानसिक आवेगों और उप-आवेगों के अनेक प्रकार हैं। आवेग चार हैं— क्रोध, मान, माया और लोभ । ये अपनी-अपनी मात्रा के अनुसार मानसको प्रभावित करते हैं ।
भय, शोक, घृणा, ईर्ष्या और कामवासना - व्यक्ति के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं । आवेग : तीव्रता के कारण
क्रोध आदि की शक्ति तीव्र होती है, इसलिए वे आवेग हैं । वे व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करने के अतिरिक्त उसके आन्तरिक गुणों – सम्यक् दृष्टिकोण और आत्म- नियन्त्रण को भी प्रभावित करते हैं । भय आदि उप-आवेग व्यक्ति के आन्तरिक गुणों को प्रत्यक्षतः उतना प्रभावित नहीं करते जितना शारीरिक और मानसिक स्थिति को करते हैं । उनकी शक्ति अपेक्षाकृत कम होती है, इसलिए वे उप-आवेग हैं। आंतरिक गुणों में होने वाला प्रभाव बहुत सूक्ष्म होता है अतः वह सहजभाव से पहचाना नहीं जाता । आवेगों और उप-आवेगों का शरीर और मन पर जो प्रभाव होता है, उसकी जानकारी हमें चिकित्सा शास्त्र की पुरानी और नयी सभी शाखाओं के साहित्य द्वारा प्राप्त होती है ।
प्रभाव की स्थिति
हैं :
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ये उप-आवेग हैं । ये
योगशास्त्र में भी इसकी चर्चा मिलती है । कुछेक उदाहरण इस प्रकार
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