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मन की समस्या और तनाव
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के द्वारा, विश्लेषण के द्वारा। यह विचय की प्रक्रिया, विश्लेषण की प्रक्रिया चिकित्सा की प्रक्रिया है। आज का मनोचिकित्सक सबसे पहले विश्लेषण का सहारा लेता है। कोई भी मानसिक बीमारी से ग्रस्त-व्यक्ति मानस-चिकित्सक के पास जाता है तो चिकित्सक सबसे पहले उसे कायोत्सर्ग कराता है, शिथिलीकरण करने के लिए कहता है। इसके बाद कहता है-'अपना विश्लेषण करो, प्रतिक्रमण करो, अतीत की ओर लौटो और मन में जो-जो बातें आएं, निःसंकोच कहते जाओ। छुपाओ मत ।' अब वह रोगी अपना विश्लेषण करता है, प्रतिक्रमण करता है। मनोचिकित्सक सुनता जाता है
और सुनते-सुनते यह बात पकड़ लेता है कि मन की गांठ कहां घुली है ? मानसिक ग्रन्थि कहां बनी है ? क्या बीमारी है ? कौन-सी वृत्ति का दमन हुआ है ? किस प्रकार की ग्रन्थि बनी है ? वह फिर उस ग्रन्थि को खोलने का प्रयत्न करता है। अध्यात्म की प्रक्रिया
अध्यात्म की चिकित्सा भी इसी प्रकार चलती है। ध्यान की भी यही प्रक्रिया है। आर्त-रौद्र ध्यान के द्वारा जो ग्रन्थियां बनती हैं वे ग्रन्थियां शारीरिक और मानसिक विकृतियां पैदा करती हैं, रोग पैदा करती हैं। मैं मानता हूं-मनोविज्ञान का यह सूत्र गलत नहीं हैं कि जो वृत्ति दबाई जाती है, वह वृत्ति शारीरिक और मानसिक रोग पैदा करती है। इसे हम अध्यात्म की भाषा में समझें । ज्यों ही वृत्ति का दमन किया, दबाने का प्रयत्न किया किन्तु निर्जरा नहीं की, उसका रेचन नहीं किया तो उसका बंध हो जाएगा। वह बंध सताता रहेगा। क्रोध आता है और चला जाता है। यह न मानें कि क्रोध आया और चला गया। यह बहुत बड़ी भ्रान्ति होगी। क्रोध आया, स्थूल शरीर से चला गया, पता नहीं चलता कि क्रोध है। क्रोध आया था इस शरीर की आकृति में। अब क्रोध अणु बनकर हमारे भीतर पैठ गया। जो क्रोध व्यक्त हुआ था अपने रूप में, वह चला गया, किन्तु उसने अपना आणविक रूप छोड़ दिया। कर्म के भी परमाणु हैं। हमारे जो कर्म का बंध होता है वह परमाणु का बंध होता है। आणविक क्रोध हमारे भीतर है। वह सताता रहता है, तनाव पैदा करता है । हमें निर्जरा करना, रेचन करना, शोधन करना सीखना होगा। हम ध्यान के द्वारा यह सीखें। हम क्रोध का दमन न करें, उसका रेचन करें, शोधन करें। क्रोध का संवर करें, विवेक करें। जो व्यक्ति अक्रोध बन गया, जिसमें क्रोध का लेश भी नहीं बचा, उस व्यक्ति के परमाणु करुणा का विकिरण करते रहते हैं। उससे आभामंडल सुन्दर और स्वच्छ बनता है। उस व्यक्ति की प्रत्येक प्रवृत्ति में मधुरता और निखार आ जाता है। ऐसा व्यक्ति तनाव की समस्या का हल स्वयं ढूंढने में सफल हो जाता है।
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