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________________ चित्त और मन यदि व्यक्ति नौ मिनट तक क्रोध के आवेश में रहता है तो नौ घंटा तक काम करने में प्रयुक्त होने वाली शक्ति नष्ट हो जाती है। कहां नौ मिनट और कहां नौ घंटा ! कितनी हानि ! यह धार्मिक उपदेश नहीं है, प्रयोगशाला में परीक्षित सत्य है। धर्मशास्त्र क्रोध के दुष्परिणामों की लंबी तालिका प्रस्तुत करते हैं। वह सारी तालिका नरक के संदर्भ में कही गयी है। क्रोध करने वाला नरकगामी होता है । क्षमा करने वाला स्वर्ग को प्राप्त होता है। मध्यकाल में इन दो शब्दों में सारी समस्या को बांध लिया गया । आज का आदमी इस भाषा को नहीं समझ सकता कि क्रोध करने से नरक मिलता है और क्षमा करने से स्वर्ग मिलता है। एक बार यह मान भी लिया जाए कि क्रोध करने से नरक मिलता है तो भी उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसके मन में न नरक का भय है और न स्वर्ग का प्रलोभन है । आदमी इस भय और प्रलोभन से ऊपर उठ चुका है। हितकर नहीं है निरोध और दमन आज की शरीरशास्त्रीय और मानसशास्त्रीय खोजों ने जिन सचाइयों का उद्घाटन किया है वे सचमुच सोचने के लिए बाध्य करती हैं। किन्तु वे भी सही और स्थायी समाधान नहीं हैं। वे भी तात्कालिक हैं। यह माना गया है कि भावनात्मक आवेगों (इमोसन्स) का जो आघात होता है, उसे न रोकना चाहिए और न दबाना चाहिए। उनका निरोध और दमन-दोनों हितकर नहीं होते । उन आवेगों का तात्कालिक उपाय भी किया जा सकता है किन्तु उसे स्थायी मान लेना उचित नहीं होता। मानसिक तनाव को मिटाने में ध्यान बहुत उपयोगी बनता है। जैसे जैसे ध्यान की परिपक्वता आती है वैसे वैसे मानसिक तनाव विसजित होता चला जाता है। तनाव विसर्जन का सूत्र तनाव विसर्जन का सूत्र है-विचय-ध्यान । विचय का अर्थ हैविश्लेषण । प्रेक्षा एक विश्लेषण है। यह आत्म-विश्लेषण है, सेल्फ एनलिसिस है। व्यक्ति आत्म विश्लेषण करे-क्रोध क्यों आता है ? लोभ क्यों जागता है ? मिथ्यादृष्टि क्यों जागती है ? इसका हम विश्लेषण करें। हम विश्लेषण नहीं करते हैं तब सारी भावनाएं पनपती रहती हैं । जब हम अपना विश्लेषण प्रारंभ करते हैं, अपनी ज्ञान-शक्ति को जगाते हैं तब ये सारी बातें ट्टने लग जाती हैं। जो व्यक्ति अपनी ज्ञान-शक्ति का उपयोग नहीं करता, उसमें ये सारी विकृतियां पनपती रहती हैं। हम अपनी ज्ञान-शक्ति का उपयोग करें, विश्लेषण करें। जब हम अपना विश्लेषण करते हैं तब आत-रौद्र ध्यान छुट जाते हैं, धर्म-ध्यान शुरू हो जाता है। धर्म-ध्यान का प्रारंभ होता है विचय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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