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मन की समस्या और तनाव
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प्रायः आदमी आटे से चोकर निकालकर बाहर फेंक देता है। इसका अर्थ है-वे सार चीज फेंक देते हैं और निस्सार चीज खाते हैं। चोकर मिश्रित आटे की रोटी इतनी मुलायम नहीं होती, पर खाने में स्वादिष्ट लगती है और लाभदायक बहुत होती है। चोकर रहित आटे की रोटी या पूड़ी मुलायम होती है, खाने में स्वादिष्ट लगती है, पर हानिकारक होती है, आंतों को बिगाड़ती है, अनेक रोग उत्पन्न करती है। मनोबल का प्रश्न
ब्रिटेन के एक होटल में एक महिला भोजन करने गई। वह अपने साथ चोकर ले गई। दूसरे ने पूछा-सिस्टर ! यह चोकर क्यों लायी हो ? उसने कहा-मैं चोकर खाती हूं, इसलिए मोटापा नहीं बढ़ता, बदन इकहरा रहता है, चर्बी नहीं बढ़ती। उस बहन ने चोकर के प्रयोग किए और एक किताब लिखी। पहली बार में ही उसकी दस लाख प्रतियां बिक गई। इंग्लैंड में एक क्रान्ति जैसी हो गई। उस समय वहां चोकर मिलना बन्द हो गया।
चोकर विटामिन 'बी' से भरा पड़ा है। चोकर निकाल देने के बाद आटे में कुछ सार नहीं बचता।
जिसमें खाद्य-संयम और वासना का संयम आ जाता है, वह धार्मिक होता है। जिसमें ये दोनों संयम नहीं होते, उसे धार्मिक कहना कठिन है। मनोबल इन दोनों के संयम से ही बढ़ सकता है। मनोविज्ञान : तनावमुक्ति के परिप्रेक्ष्य में
मनोवैज्ञानिक मानसिक समस्याओं के समाधान के लिए बहुत प्रयत्नशील हैं। पुराने जमाने में केवल शरीर की चिकित्सा पर अधिक बल दिया जाता था किन्तु आज मनोविज्ञान मानसिक उलझनों के निवारण के लिए अनेक प्रयोग प्रस्तुत कर रहा है। डॉ. जार्ज स्टीवन्सन और डॉ० टील ने एक पुस्तक लिखी है-'लाइफ, टेन्सन एंड रिलेक्सेशन ।' उस पुस्तक में तनावमुक्ति के कुछ उपाय निर्दिष्ट हैं। उनका कथन है कि जब क्रोध आए या क्रोध का तनाव बढ़े तब किसी न किसी प्रकार के शारीरिक श्रम में लग जाना चाहिए, जिससे कि ध्यान बंट जाने के कारण क्रोध का आवेग कम हो जाए। दूसरा प्रयोग यह है कि जब क्रोध आदि का आवेग आए तब स्वाध्याय या किसी मनोरंजन में लग जाना चाहिए।
ये दोनों उपाय भी तात्कालिक हैं, सामयिक हैं, ये समस्या को स्थायी रूप में समाहित नहीं कर सकते । क्रोध और मनोविज्ञान ___मनोवैज्ञानिकों की शोध के अनुसार यह तथ्य प्रतिपादित हुआ है कि
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