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________________ ११२ चित्त और मन संयम के बिना तनाव को मिटाया नहीं जा सकता। भीतर आग भभक रही है असंयम की । तनाव क्यों नहीं उतरेगा ? दूध में उफान क्यों नहीं आएगा? लोभ और कामवासना की आंच पर रखा हुआ मन बेचारा गर्म नहीं होगा तो क्या होगा? रक्तचाप, हार्टट्रबल, कैन्सर, अल्सर आदि बीमारियों का जनक है असंयम । संयम का अर्थ हम इच्छाओं के दास नहीं हैं। हम इन्द्रियों के गुलाम नहीं हैं। हम उनके स्वामी हैं । अपने स्वामित्व के अस्तित्व को अनुभव करने का अर्थ है संयम । गुलाम होना या गुलामी का अनुभव करना संयम नहीं है। इच्छाओं के वशवर्ती आदमी से मैंने कहा-इच्छाओं पर नियंत्रण करो। उसने कहा --महाराज ! आप ही तो कहते हैं कि जीवन नश्वर है। आदमी को एक दिन मरना ही पड़ेगा। मैं यहां अमर तो नहीं रहूंगा। फिर यदि इच्छाओं को पूरी करता हुआ मरूं तो इसमें हानि ही क्या है ? मृत्यु यदि पांच-दस वर्ष पहले आ जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा ? मैंने सोचा-कितना बड़ा त्याग ! इच्छाओं को पूर्ति के लिए मरण का वरण करने की तैयारी । जीवन का मोह सबसे बड़ा होता है, पर इच्छाओं के पाश में वह मोह टूट जाता है। कितना बड़ा त्याग ! कितनी बड़ी विडंबना ! खाध संयम : निदर्शन जीवन को चूसने वाली दो बातें हैं-अब्रह्मचर्य और जीभ की लोलपता । इन दोनों की उच्छृखलता सारे जीवन के रस को निचोड़ डालती है। व्यक्ति संभल नहीं पाता और धीरे-धीरे जीवन का रस चुक जाता है। जो व्यक्ति खाद्य-संयम करता है, वह लम्बे समय तक जवान रह सकता है । आचार्यश्री तुलसी इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। वे चार बजे उठते हैं और रात के ११-१२ बजे तक कार्यरत रहते हैं। वे इस प्रकार स्फूर्ति के साथ अठारह घंटे तक कार्य कर सकते हैं। वाणी में वही तेज, आकृति में वही ओज। इसका मूल कारण है खाद्य-संयम । यदि यह नहीं होता तो वे इतनी लम्बी पदयात्राएं, इतना जन-संपर्क, इतना श्रम, कदापि नहीं कर पाते। प्रभावित करता है भोजन जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है भोजन । किन्तु आश्चर्य है कि लोग इसके विषय में बहुत कम जानते हैं । अधिकतर महिलाएं रसोई बनाती हैं, पर वे रसोई विज्ञान से अनभिज्ञ रहती हैं। वे समझती हैं कि भोजन का बाह्य रूप-रंग अच्छा होना चाहिए। भोजन स्वादिष्ट होना चाहिए। फिर चाहे वह भोजन हानिकारक ही क्यों न हो। उनकी दष्टि में भोजन की दो ही कसौटियां हैं-देखने में अच्छा हो, खाने में स्वादिष्ट हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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