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________________ मन की समस्या और तनाव ध्यान भी करें, संतुलन नहीं आएगा। ध्यान होगा ही नहीं, ध्यान तभी हो सकता है जब नाड़ी-संस्थान मजबूत होता है । कोई आदमी भारी-भरकम है। हमें लगेगा-बड़ा हट्टा-कट्टा है, स्वस्थ है। यदि शरीर में मांस कम है तो लगेगा-पतला-दुबला आदमी है । हम उसको कमजोर मान लेंगे और उस भारी-भरकम को शक्तिशाली मान लेंगे। यह मानना सही नहीं होगा। 'तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थलेषु कः प्रत्ययः' जिसमें तेज है वह बलवान होता है, स्थूल में कोई विश्वास नहीं होता। हमारे शरीर में मूल है-नाड़ी संस्थान । जीवन का अर्थ है-नाड़ी-संस्थान की सक्रियता । दो ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं-एक है नाड़ी-संस्थान और दूसरा है ग्रन्थिसंस्थान । ये ही सारा प्रकाश फैला रहे हैं, सब कुछ करा रहे हैं । मांस कोई बड़ी बात नहीं है । दूसरी धातुओं में भी उतनी ताकत नहीं है। संतुलन का सूत्र मानसिक असंतुलन के ये कारण हमारे सामने हैं। हम चाहते हैं, मानसिक संतुलन बना रहे। उसका यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-शरीरप्रेक्षा, शरीर को देखना । इससे नाड़ी-संस्थान दृढ़ होता है और कुछ रसायनों की पूर्ति भी करता है। हमें ज्ञात होना चाहिए कि कुछ विटामिनों को हमारा शरीर पैदा करता है। सब बाहर से ही हम नहीं लेते हैं। हम भीतर से भी लेते हैं। सूर्य का ताप लगता है और विटामिन 'डी' अपने आप आ जाता है। इसका सबसे अच्छा स्रोत है-सूर्य का ताप। और भी बहुत सारे रसायन, प्रोटीन, हमारा शरीर पैदा करता है। पर करेगा तब जब हम अनावेग की स्थिति में रहेंगे। यह ध्यान का प्रयोग, मानसिक संतुलन का प्रयोग, केवल मोक्ष पाने के लिए ही नहीं है, वर्तमान जीवन को सुख से जीने के लिए भी *पदार्थ प्रतिबद्धता और तनाव । भगवान् महावीर ने एक शब्द दिया 'लाघव' । मुनि 'लाघव' का 'प्रतीक होना चाहिए। उसे हल्का होना चाहिए। व्यक्ति जितना पदार्थ से बंधता है, उतना भारी होता जाता है और पदार्थ से जितना मुक्त होता है, उतना हल्का होता जाता है। जैसे-जैसे पदार्थ की प्रतिबद्धता बढ़ती है वैसे"वैसे मन भारी होता जाता है, टूटने लग जाता है, दुर्बलताएं आती चली जाती है। जैसे-जैसे अवस्था का परिपाक होता है, मन क्षीण और दुर्बल "होता चला जाता है। - आज का युग पदार्थवाद का युग है। पदार्थवादी परंपरा ने भोगवाद को बढ़ाया है और इससे असंयम बढ़ा है। लोभ और कामवासना जितनी "प्रबल होगी, तनाव उतना ही अधिक होगा। असंयम तनाव का जनक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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