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चित्त और मन
असंतुलित आहार
___ मानसिक असंतुलन का एक कारण है-असंतुलित आहार । असंतुलित आहार के कारण भी संतुलन बिगड़ जाता है । इस विषय पर कम ध्यान दिया जाता है, किंतु आज की वैजानिक खोजों ने इस बात पर बहुत प्रकाश डाला है। पागलपन जो होता है वह केवल मानसिक उलझनों के कारण नहीं होता। असंतुलित भोजन के कारण भी आदमी पागल बन जाता है । यह जो पोषक तत्त्वों के निर्देशन का विषय है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है और ध्यान की साधना करने वाले व्यक्ति के लिए यह जानना बहुत जरूरी है। दस रोटियां खाएंगे, कोरा अन्न ही अन्न खाया, कार्बोहाइड्रेट खाया, श्वेतसार खाया, पेट तो भर जाएगा पर मस्तिष्कीय संतुलन बिगड़ जाएगा। प्रोटीन भी चाहिए, वसा भी चाहिए, लवण भी चाहिए, सब चाहिए। जब भोजन पूरा संतुलित होता है तो मस्तिष्क भी ठीक काम करता है, संतुलन उतना नहीं बिगड़ता। किंतु जिस व्यक्ति को बहुत गुस्सा आता है, जो बहुत चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है, बार-बार लड़ाई-झगड़ा करता है, दिनभर परिवार को सताता है, उसको यह भी सोचना चाहिए की कोई-न-कोई आहार का दोष इसके साथ जुड़ा हुआ है। नाड़ी संस्थान की दुर्बलता
मानसिक असंतुलन का एक कारण है--नाड़ी की दुर्बलता। नाड़ी संस्थान के दो मुख्य अंग हैं-एक मस्तिष्क और दूसरा सुषुम्ना का सारा हिस्सा। सुषुम्ना-शीर्ष और सुषुम्ना स्पाईनल कॉर्ड । ये नाड़ी-संस्थान के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं। जिसका स्पाईनल कॉर्ड या पृष्ठरज्जु दूषित होता है, उसका संतुलन बिगड़ जाता है।
नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता, पृष्ठरज्जु की दुर्बलता और मस्तिष्क की दुर्बलता-ये सब असंतुलन के कारण बनते हैं। जीवन का अर्थ : अजकल एक चिकित्सा पद्धति चली है-ओष्टियोपैथी। इस चिकित्सा में और कुछ नहीं किया जाता केवल स्पाईनल कॉर्ड पर कुछ प्रेशर दिया जाता है। इससे सारे रोगों की चिकित्सा की जाती है। यहां रोगों की जड़ है। यहीं से सारे शरीर में नर्बस् जाते हैं। फैलते हैं। यहां तंतुओं का, स्नायुओं का और धमनियों का जाल बिछा हुआ है, सब यहीं से होकर गया है । मूल यहीं है । यहीं से सारे अलग-अलग होते हैं । यह हमारा केन्द्रीय नाडीसंस्थान है और इसके दोनों ओर अनुकम्पी और पुरानुकम्पी नाड़ी-संस्थान है। यहीं से सारा-का-सारा संचालन हो रहा है। जब नाड़ी-संस्थान ही दुर्बल हो जाता है तो फिर संतुलन की बात कही नहीं जा सकती। चाहे हजार बार
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