SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ चित्त और मन परिवार का वातावरण दूसरा है परिवार का वातावरण । यह भी उदासी का कारण बनता है । परिवार में नाना प्रकार के लोग हैं, नाना प्रकार की समस्याएं हैं। वे अनेक प्रकार की परिस्थितियां पैदा कर डालते हैं और व्यक्ति उदास हो जाता है । परिवार का सदस्य उदासी से घिर जाता है। उसकी प्रसन्नता गायब हो जाती है । पारिवारिक और घरेलू स्थितियां, जो मन के अनुकूल नहीं होतीं, उदासी का हेतु बनती हैं। परिवार में बेटा और बहू-दोनों प्रसन्न रहने वाले हैं। किन्तु परिवार के अन्यान्य सदस्य उन दोनों को निरंतर टोकते रहते हैं, उनमें कमी दिखाते रहते हैं, ताना कसते रहते हैं तो दोनों उदास हो जाते हैं । उनकी प्रसन्नता खिन्नता में बदल जाती है । पारिवारिक वातावरण भी उदासी का मुख्य हेतु है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण तीसरा है समाज का वातावरण । समाज अनेक व्यक्तियों का समूह है। वहां अनेक प्रकार की समस्याएं और स्थितियां पैदा होती हैं और आदमी उदास हो जाता है । वह उन सामाजिक स्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। इस प्रकार आन्तरिक वातावरण, पारिवारिक वातावरण और सामाजिक परिवेश उदासी के हेतु बनते हैं। प्रश्न होता है कि उदासी से मुक्ति पाने का उपाय क्या है ? वैज्ञानिकों ने भी इस प्रश्न पर विचार किया है। उनका सुझाव है कि यदि पोषक आहार पर्याप्त मात्रा में होता है तो व्यक्ति उदासी से छुटकारा पा लेता है। पोषक आहार के अभाव में उदासी तत्काल आ जाती है। यदि आहार में विटामिन्स और एमिनो एसिड का उचित संतुलन होता है तो उदासी का एक हेतु समाप्त हो जाता है । उदासी का निरसन : विधायक चितन उदासी से बचने के लिए निषेधात्मक भावों से बचना जरूरी है। निषेधात्मक भाव समस्या पैदा करते हैं। मनुष्य का स्वभाव कहें या कर्म का विपाक कहें, कुछ विचित्र-सा लगता है कि मनुष्य में विधायक भाव कम होते हैं और नकारात्मक भाव अधिक आते हैं। आदमी नकारात्मक भावों में जीता है । पोजिटिव शक्ति कम काम करती है, नेगेटिव शक्ति अधिक काम करती है। जो निषेधात्मक भावों में जीता है, वह उदासी से कभी छुटकारा नहीं पा सकता । वह जहां भी जाएगा, उदासी उसका पीछा करेगी। वह कभी प्रफुल्लित नहीं रह पाएगा। आदमी की यह धारणा बन गई कि कोई गाली दे या मारे-पीटे तो प्रफुल्लता रह नहीं सकती। यह एक बात है। पर ऐसी स्थिति में भी प्रसन्नता बनाई रखी जा सकती है। यदि प्रसन्नता नहीं रहती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy