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________________ मन की समस्या और तनाव १०७ लेगा। प्रेक्षा ध्यान के संदर्भ में कहा जाता है कोई भी काम करो तो साथ में कायोत्सर्ग करो । आसन करो तो कायोत्सर्ग । सर्वांगासन करो या मत्स्यासन । वंदनासन करो या हलासन । प्रत्येक आसन के बाद कायोत्सर्ग करना जरूरी है। हर प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति । प्रवृत्ति और निवृत्ति का एक संतुलन बने । जरूरी है संतुलन काम करने की कला है-प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन । वह जीवन की प्रणाली अच्छी नहीं होती जिसमें कोरी प्रवृत्ति होती है। कोरी निवृत्ति भी नहीं चल सकती। उससे भी जीवन नहीं चल सकता। प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन, सक्रियता और निष्क्रियता का संतुलन, व्यस्तता और कायोत्सर्ग का संतुलन, तनाव और शिथिलीकरण का संतुलन । तनाव भी जीवन में जरूरी होता है किन्तु साथ में शिथिलीकरण का संतुलन चाहिए । कोरा तनाव हो तो व्यक्ति टूट जाता है। कभी तनाव और कभी ढील देना। संतुलन हो तो ठीक काम चलता है। कोरा खींचा जाता है तो रस्सी भी टूट जाती है। हृदय भी कायोत्सर्ग करना जानता है। हर धड़कन के बाद कायोत्सर्ग कर लेता है, विश्राम ले लेता है। इसका अर्थ है-आठ घंटा काम करना और सोलह घंटा विश्राम लेना। उदासी मानसिक असंतुलन का एक कारण है-उदासी । उदासी मानसिक विकार है। डिप्रेशन एक बड़ा रोग है। उदास व्यक्ति अपनी क्षमताओं का ठीक उपयोग नहीं कर सकता। उसकी शक्तियां मुरझा जाती हैं, क्षीण हो जाती हैं, सिकुड़ जाती हैं। प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति ही अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर सकता है। इस संदर्भ में हम आन्तरिक वातावरण पर विमर्श करें। आन्तरिक वातावरण व्यक्ति-व्यक्ति का निजी होता है। उसको प्रफुल्लित बनाए रखना बहुत कठिन काम है। व्यक्ति उदास होता है। इसका कारण है कि ग्रन्थियों के रसायन, स्राव संतुलित नहीं होते। उदासी अकारण आ जाती है। मस्तिष्क का एक रसायन है-सेराटोनिन । इसकी कमी या असंतुलन उदासी का कारण बनता है। थाइराइड ग्रन्थि का स्राव कम होता है, उदासी छा जाती है। एड्रीनल ग्रन्थि का स्राव असंतुलित होता है, उदासी आ जाती है । ग्रन्थियों के असंतुलित स्राव के कारण उदासी उभरती है। मस्तिष्क में एक रसायन होता है-बीटा एन्डोरफिन, जो मनोभावों को प्रभावित करता है। जब वह रसायन पूरा नहीं बनता तब उदासी छा जाती है। रासायनिक असंतुलन, ग्रन्थियों का अस्राव-यह उदासी का आन्तरिक कारण है । निषेधात्मक दृष्टिकोण भी उदासी का आन्तरिक कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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