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मन की समस्या और तनाव
गति और तनाव
शरीर की गति और अगति और मन की गति और अगति - ये दो बातें हैं । हम सोचते हैं कि शरीर की तो अगति हो सकती है । शरीर से कोई आदमी स्थिर भी हो सकता है, शिथिलीकरण कर सकता है, शान्त हो सकता है | पर क्या मन की अगति भी संभव है ? मन रुकता नहीं है, टिकता नहीं है । क्या मन को टिकाया जा सकता है ? हां, यह संभव है । बिलकुल संभव है । उसी दिन हमारी शक्तियों का विकास होगा जिस दिन हम शरीर को स्थिर करने के साथ-साथ मन को भी स्थिर कर लेंगे । योग का सबसे बड़ा सूत्र, योग का सबसे बड़ा मर्म, योग का सबसे बड़ा रहस्य है - सन्तुलन । गति और स्थिति का सन्तुलन, प्रवृत्ति और निवृत्ति का सन्तुलन । व्यक्ति गति ज्यादा करता है, प्रवृत्ति ज्यादा करता है इसलिए अशांति पैदा होती है । शरीर की गति ज्यादा होती है, शरीर में तनाव बढ़ जाता है । मन की गति ज्यादा होती है तो शरीर और मन - दोनों में तनाव आता है ।
अशान्ति का कारण
प्रश्न है - मन की अशांति क्या है ? मन की ज्यादा गति ही मन की अशांति है। हम मन को रोक नहीं पाते । पागल कौन होते हैं ? जो मन को रोक नहीं पाते, वे पागल होते हैं । व्यक्ति ने देखा - सड़क पर मोटर जा रही है, वह कहेगा - मोटर जा रही है, मोटर जा रही है । वह इस विचार को मन से निकाल ही नहीं सकता । इसी का नाम पागलपन है । समझदार आदमी वह होता है, जिसने घटना को देखा, समझा, मन में विचार आया, उसे मन से निकाल दिया और दूसरे विचार में लग गया । वह पागल नही होता गगल और समझदार में इतना ही फर्क होता है । मनोविज्ञान की भाषा में इसे कहते हैं - विचार - प्रसक्ति । विचार की ऐसी प्रसक्ति हो जाती है कि व्यक्ति उस विचार को छोड़ नहीं पाता, अपने मन से निकाल नहीं पाता । जो एक रट लग गयी, वही रट घन्टों तक लगती चली जाएगी, आदमी पागल हो जाएगा। मन की स्थिति को भी समझना चाहिए। शरीर की ति और स्थिति का सन्तुलन, मन की गति और मन की स्थिति का सन्तुलन, जो आदमी इन दोनों बातों को कर पाता है, वास्तव में वह योग
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