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मन की शान्ति
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जो चक्रवर्ती सम्राट को भी नहीं होती। हम अपने जीवन को प्रयोगशाला बनाकर यह निर्णय करें-जिन मान्यताओं को स्वीकार किए हुए हैं, वे काल्पनिक हैं या यथार्थ ? एक बार मन को सेवक मानकर हमें अवश्य परीक्षा करनी चाहिए। मैं यह परामर्श नहीं दे सकता कि शरीर-सुख और इन्द्रिय-सुख की ओर सर्वथा ध्यान न दें। किन्तु इतना-सा परामर्श अवश्य दूंगा-हम मन को सेवक मानकर चलें, स्वामी मानकर नहीं।
मानसिक समस्याओं के अनेक कारण है। उन सबका सम्यक् विश्लेषण किए बिना हम मन की समस्या को समाधान नहीं दे सकते । हर व्यक्ति जाने या न जाने पर कम से कम जो मानसिक शान्ति के क्षेत्र में काम करने वाले हैं, मानसिक चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले हैं, अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले हैं और जो विश्व-शान्ति की चर्चा और परिक्रमा करने वाले हैं, उन लोगों के लिए तो यह बहुत जरूरी है कि वे मानसिक अशान्ति के सारे हेतुओं को जानें और फिर समाधान की बात करें। समस्या का समाधान : अनन्त चतुष्टयो
व्यक्तिगत विशेषताओं पर भी हमें विचार करना होगा। एक ओर हम वातावरण से, परिस्थितियों से, हेतुओं से, निमित्तों से प्राप्त होने वाली समस्याओं पर विचार करें तो दूसरी ओर व्यक्ति के आन्तरिक स्रोतों पर भी विचार करें। यही अध्यात्म का और इस भौतिक विज्ञान का एक केन्द्रबिन्दु बनता है। हम व्यक्ति के आन्तरिक स्रोतों पर विचार करें। एक बहुत सुन्दर पुस्तक निकली है-Man Unknown | उसमें वैज्ञानिक दृष्टि से इतना विश्लेषण किया गया है कि 'मनुष्य' अभी तक अज्ञात है। मनुष्य का थोड़ा-सा हिस्सा, उसके मस्तिष्क का पांच-सात प्रतिशत हिस्सा ही ज्ञात हुआ है। नब्बे प्रतिशत से अधिक हिस्सा अज्ञात ही है । ज्ञात बहुत छोटा-सा बिन्दु है। किन्तु अज्ञात तो पूरा-का-पूरा अज्ञात ही है । ज्ञात के आधार पर इतने बड़े अज्ञात को अस्वीकार करना कैसे संभव होगा ? अध्यात्म के अचार्यों ने अज्ञात पर भी बहुत अनुसंधान किया है। उन्होंने अपनी अन्तःदृष्टि और अन्तःप्रेरणा से अज्ञात को समझने का बहुत बड़ा प्रयत्न किया है । अध्यात्म का यह बिन्द हमें उपलब्ध है । आज से नहीं, किसी वैज्ञानिक की पुस्तक से नहीं, किन्तु हजारों-हजारों वर्ष पहले की गई उन घोषणाओं से हम परिचित हैं न केवल मनुष्य में, किन्तु प्रत्येक प्राणी में अनन्त शक्ति विद्यमान है। अनन्त चतुष्टयी जैन दर्शन में बहुत प्रसिद्ध है। अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति और अनन्त आनन्द-यह अनन्त चतुष्टयी है। अनजान हैं हम
हमारे शरीर में, हमारे भीतर यह अनन्त चतुष्टयी है। भीतर इतने
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