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________________ 25 कोई बता नहीं सकता । raint दृष्टिकोण वह बाह्य स्पर्श मन बाह्य आकर्षणों और विकर्षणों से जुड़ा हुआ है । से प्रभावित बना हुआ है । सच यह है कि असख्य परमाणु उससे स्पष्ट हो रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं । एक अमेरिकन महिला डॉ० जे० सी० ट्रष्ट ने अणुआभा के फोटो लिये । आणविक प्रभाव को देखते हुए यह कहना बहुत सरल नहीं है कि मैं स्वतंत्र बुद्धि से सोच रहा हूं। हर व्यक्ति बाह्य परिस्थिति और निमित्तों से बंधा हुआ है । आज कोई भी शरीरधारी, जो इस जीवमण्डल और वायुमण्डल में जी रहा है, सार्वभौम स्वतन्त्र नहीं है । जो कोई विचार निष्पन्न होता है, यह अनेक वस्तुओं के योग से निष्पन्न होता है, इसलिए निरपेक्षता की बात करना नितान्त अज्ञान होगा । चित्त और मन हमारा दृष्टिकोण सापेक्ष होना चाहिए । हमारे एक विचार के पीछे अनेक अपेक्षाएं होती हैं । सापेक्षता से हमारी मानसिक शान्ति को बल मिलता है | एकांगी दृष्टिकोण से अशान्ति निष्पन्न होती है । बुद्धिवाद आज का बुद्धिवाद भी अशान्ति का एक कारण बन रहा है । यदि जीवन में शान्ति चाहते हैं, सुख की कल्पना साकार करना चाहते हैं तो अपने मन पर नियंत्रण करना होगा । सुख तीन प्रकार का होता है - शारीरिक • सुख, इन्द्रिय सुख और मानसिक सुख । शारीरिक सुख प्रिय है । इसे प्राप्त करने के लिए काफी सचेष्ट भी रहते हैं । इन्द्रियों के सुख के लिए भी बहुत ही प्रयत्नशील रहते हैं परन्तु मानसिक सुख की ओर हमारा ध्यान नहीं -जाता । हम मान लेते हैं कि यदि शारीरिक सुख एवं इन्द्रिय-सुख की प्राप्ति हुई तो मानसिक सुख स्वतः प्राप्त हो जाएगा । यह मूल में ही भूल हुई है । यदि मन को मालिक मानकर चलेंगे तो सुख की अनुभूति कदापि नहीं हो सकेगी। हाँ, सेवक मानने से सुख अवश्य प्राप्त होगा । मन चाहता है 'कि सुख मिले परन्तु यदि उस पर अधिकार नहीं किया गया तो सुख नहीं मिल सकेगा । यदि मन को अपने नियंत्रण में रखेंगे तो सुख का समुद्र लहराएगा, शान्ति मिलेगी। मन को सेवक मानने पर इन्द्रियां स्वयं सेवक बन जाएंगी। हमारे सामने दुःख नाम की कोई चीज ही नहीं रह जाएगी । परन्तु यह स्थिति तभी होगी जब मन को मालिक मानकर नहीं, सेवक - मानकर चलेंगे । चन्द्रमा की सैर करने से भी अधिक सुख की अनुभूति इसमें होगी। भगवान् महावीर ने कहा- बारह मास का दीक्षित साधु सारे पोद्गलिक सुखों को लांघ जाता है । उसे उस सुख की अनुभूति होती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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