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________________ चित्त और मन आदमी सोचता है कि पानी गर्म न हो। नीचे आग जल रही है, बर्तन को आंच लग रही है तो पानी गर्म कैसे नहीं होगा ? जब तक आग है तब तक पानी गर्म होता रहेगा, उबलता रहेगा। हमारे भीतर भावों की आग जल रही है, अशुद्ध भावों की तेज अग्नि भभक रही है। प्रतिशोध का भाव है, वासना का भाव है, भय और घृणा का भाव है, राग और द्वेष का भाव है। यह अग्नि जल रही है तो ऊपर रखा हुआ मन गर्म क्यों नहीं होगा ? वह उबलेगा क्यों नहीं ? अशान्त क्यों नहीं होगा ? मन पानी है । पानी गर्म नहीं होता। उसका स्वभाव है ठंडा होना। जब आग आती है, तब उसे गर्म होना पड़ता है। मन अशान्त नहीं है, ठंडा है, किन्तु नीचे अशुद्ध भावों की भट्ठी जल रही है, तब मन गर्म क्यों नहीं होगा ? उसमें उबाल क्यों नहीं आएगा ? यदि मन की अशान्ति को मिटाना है तो हमें ध्यान देना होगा भावों पर । भाव की शान्ति, मन की शान्ति । भाव की अशान्ति मन की अशांति । यह समीकरण प्राप्त होता है। सबसे बड़ी समस्या __ मनोविज्ञान की भाषा में हम जागृत चेतना-कोन्सियस माइंड-के स्तर पर जी रहे हैं। उसके पीछे है अर्ध चेतन और अवचेतन माइंड का स्तर-सब्कोन्सियस और अन्-कोन्सियस माइंड । उससे हम अजान हैं। हमारी बहुत सारी प्रवृत्तियां अवचेतन मन के द्वारा प्रेरित होती हैं किन्तु हमें ज्ञात नहीं है कि अवचेतन में क्या-क्या है ? हमारी प्रत्येक क्रिया का प्रतिबिम्ब अवचेतन मन तक चला जाता है और फिर उसकी प्रतिक्रिया होती है, अभिव्यक्ति होती है। क्या समस्या के समाधान में यह बहुत बड़ी बाधा नहीं है ? यह दोहरा व्यक्तित्व, विभाजित व्यक्तित्व बहुत बड़ी बाधा है। हम दो व्यक्तित्वों में जीते हैं--एक है बाहरी व्यक्तित्व और दूसरा है भीतरी व्यक्तित्व, आन्तरिक व्यक्तित्व । बाहरी व्यक्तित्व का एक रूप है और आन्तरिक व्यक्तित्व का दूसरा रूप है । यही सबसे बड़ी समस्या है। जब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक कैसे संभव है कि मानसिक समस्या का समाधान हो जाए ? कैसे संभव है कि मानसिक शान्ति प्राप्त हो, और अशान्ति का चक्र समाप्त हो ? आर-पारदर्शी बन जाएं ___ सबसे पहले हमें अपने व्यक्तित्व को एकत्व या अद्वैत में बदलना होगा । व्यक्तित्व अखंड और एक बन जाए, सारे खंड समाप्त हो जाएं, सारे आवरण मिट जाएं। महिलाएं ही आवरण या पर्दे में नहीं होती। कोन ऐसा पुरुष है, जिसके पर्दा नहीं है ? सब पर्यों के पीछे बैठे हैं । ये सारे पर्दे समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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