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________________ मन की शान्ति हत्या-ये सारे पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्यादा होते हैं । एक्सीडेण्ट भी चन्द्रमा के दिन ज्यादा होते हैं । इस विषय पर काफी लिखा गया है, काफी सर्वे किए गए हैं, खोजें की गई हैं। कालचक्र और सौरमण्डल से हमारा भाव और मन जुड़ा हुआ है। इनसे हम प्रभावित होते हैं इसीलिए इन दिनों में विशेष अनुष्ठानों का विधान किया गया । अष्टमी, चतुर्दशी को विशेष अनुष्ठान किए जाएं, जिससे मानसिक विक्षिप्तता के प्रभावों से बचा जा सके। यह एक मुख्य हेतु था। चन्द्रमा की भांति दूसरे ग्रहों का भी प्रभाव पड़ता है। सूर्य का भी प्रभाव होता है, मंगल का भी प्रभाव होता है और गुरु का भी प्रभाव होता है। हम इतने प्रभावों से प्रभावित हैं कि अप्रभावित अवस्था हमें प्राप्त नहीं है। इस स्थिति में मानसिक शान्ति की समस्या और जटिल बन जाती है। समाधान की प्रक्रिया क्यों जो व्यक्ति मन की समस्याओं को सुलझाना चाहता है, मानसिक शान्ति को घटित करना चाहता है उसे गहराई में जाना ही होगा। स्वयं को खपाए बिना मानसिक शांति उपलब्ध नहीं होती। जो बिना प्रयत्न या श्रम किए मानसिक शान्ति को घटित करना चाहता है, वह मानसिक उलझनों में और अधिक फंस जाता है। अनेक व्यक्ति व्यग्रता से आते हैं और पूछते हैं-'महाराज ! मानसिक अशान्ति बहुत है, उसे मिटाने का उपाय बताएं। मैं जल्दी में हूं। अभी-अभी मुझे ट्रेन पकड़नी है। शीघ्रता करें और उपाय बतायें।' मैं मन ही मन सोचता हूं, कितने नादान हैं ये मनुष्य ! मानसिक उलझन मिटाना चाहते हैं, पर उसे दाल-रोटी मान रहे हैं। क्या वह क्षण भर में सुलझायी जा सकती है ? क्या इतनी छोटी समस्या है वह ? दाल-रोटी प्राप्त करना या खाना भी तो सीधी बात नहीं है । बीज कहां बोया जाता है ? कहां उगता है ? कहां बिखरता है ? पूरी प्रक्रिया को देखें । सारी प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् दाल-रोटी प्राप्त होती है। भाव की अशान्ति :मन की अशान्ति जब तक हम मन पर होने वाले प्रभावों के घटक तत्त्वों को नहीं समझेंगे, मन पर क्षेत्र का क्या प्रभाव होता है, काल का क्या प्रभाव होता है, इसको नहीं जानेंगे तब तक मानसिक शान्ति का प्रश्न समाहित नहीं होगा। इस संक्रमण और प्रदूषण के वातावरण में जीने वाला आदमी जब तक शोधन नहीं करेगा तब तक साधना की बात पर्याप्त नहीं होगी। चूल्हा है । आग जल रही है। ऊपर पानी से भरा बर्तन रखा हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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