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________________ मन की शान्ति हो जाएं और आर-पार प्रत्यक्ष हो जाए। यही अखंड व्यक्तित्व है । आरपार शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द है । "आर" नदी का एक तट है और "पार" नदी का दूसरा तट है। पुलों का निर्माण इसीलिए हुआ कि व्यक्ति आर-पार जा सके। केवल "आर" का दर्शन होता है और “पार" का दर्शन नहीं होता है तो बात अधूरी रह जाती है। आर-पारदर्शी व्यक्तित्व अखंड व्यक्तित्व माना जाता है। वह इधर को भी देख सके और उधर को भी देख सके। वह विचार, आचार और व्यवहार-इन तीन स्थूल तत्त्वों को भी देखे और कर्म, भाव और रसायन-इन तीन सूक्ष्म तत्त्वों को भी देखे। स्थूल "आर" है और सूक्ष्म “पार" है । जो आरपारदर्शी होगा, वह स्थूल को भी देखेगा और सूक्ष्म को भी देखेगा। इन दोनों-स्थूल और सूक्ष्म अर्थात् छहों तत्त्वों के बीच कोई आवरण न हो । इस स्थिति में मानसिक समस्या समाहित हो सकती शांति को प्राप्त करने का एक मार्ग है-परोक्ष और प्रत्यक्ष की दूरी को समाप्त करने का प्रयत्न करना, सूक्ष्म जगत् को समझने का अभ्यास करना, शरीरगत रसायनों को समझना और आन्तरिक भावों से परिचित होना। ऋतुचक्र और मन ऋतु का एक चक्र है। भारत में छह ऋतुओं का विकास हुआ है । हो सकता है कि भौगोलिक कारणों से कुछ स्थानों में ऋतुएं छह न होती हों, कम होती हों। किन्तु भारत में छह ऋतुएं होती हैं और उन ऋतुओं से मनुष्य का जीवन जुड़ा हुआ है । जैसे ऋतुचक्र बदलता है, हमारा शरीर भी बदलता है और स्वास्थ्य में भी परिवर्तन आता है। आयुर्वेद ने ऋतुचक्र के परिवर्तन के साथ-साथ स्वास्थ्य परिवर्तन और शरीर-परिवर्तन की विशद चर्चा की है। इसमें केवल स्वास्थ्य और शरीर ही नहीं बदलता, भाव भी बदलते हैं । भाव बदलला है तो मन बदलता है। भाव और मन-दोनों बदलते हैं। यह आयुर्वेद और अध्यात्म का मिला-जुला योग है । यह आवश्यक है कि - ऋतु-परिवर्तन के साथ मनुष्य में होने वाले परिवर्तनों का संयुक्त अध्ययन किया जाए और यह जाना जाए कि क्या-क्या परिवर्तन घटित होते हैं। मन के दो अयन वर्ष के दो अयन हैं-उत्तरायन और दक्षिणायन । हमारे मन के भी • दो अयन हैं-उत्तरायण और दक्षिणायन । तपस्या, तेजस्विता, उग्रता-यह - हमारे मन का उत्तरायण है । जड़ता और नींद की शांति-यह हमारे मन का - दक्षिणायन है। ऑकल्ट साइंस अध्यात्म की द्विविधा शाखा है। उसमें दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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