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________________ ८८ चित्त और मन आसक्ति को कम किये बिना मानसिक अशान्ति की समस्या सुलझ नहीं सकती, चित्त शक्तिशाली बन नहीं सकता। तीखा व्यंग एक दूसरी धारा भी है मानसिक अशान्ति को मिटाने की। लोग सोचते हैं-मन की अशान्ति को मिटाना है तो मावक वस्तुओं का उपयोग करें। न जाने कितने ट्रॅक्वेलाइजर्स चल रहे हैं, कितने ड्रग्स चल रहें हैं, कितनी औषधियां चल रही हैं, इस मानसिक अशान्ति को मिटाने के लिए, चित्त की समस्या को सुलझाने के लिए किन्तु जितनी दवाइयां चल रही हैं, उतनी ही मानसिक अशान्ति बढ़ रही है। दवाई बनाने वाले खूब लाभ उठा रहे हैं। दवाई बनाने वालों को लाभ मिल रहा है, पैसे मिल रहे हैं और हमारे मानसिक चिकित्सकों को लाभ मिल रहा है कि वे जी रहे हैं। एक व्यंग है, बहुत तीखा व्यंग है । बीमारी है तो डाक्टर का परामर्श लो, इसलिए कि डाक्टर जी सके । डाक्टर जो दवा बताए वह दवा खरीदो जिससे कि दवा बनाने वाले जी सकें और दवा बेचने वाले जी सकें। दवा लो मत, इसलिए कि तुम भी जी सको। मादक वस्तु से शान्ति : प्रश्नचिह्न ___ आज डाक्टर भी जो रहा है। दवाई बनाने वाली कम्पनियां भी जी रही हैं और दवाई बेचने वाले स्टोर के मालिक भी जी रहे हैं। कठिनाई यह है कि आदमी मर रहा है, क्योंकि वह दवा ले रहा है । तीन सूत्र बराबर चल रहे हैं, किन्तु आदमी दवा ले रहा है । मानसिक शांति के लिए, चित्त की समाधि के लिए, आज न जाने कितनी दवाइयां चल पड़ी हैं। लोग दवाइयां लेते हैं, पर बात बनती नहीं, समाधि मिलती नहीं, शांति मिलती नहीं। मादक वस्तु का काम है- एक बार विर मृति ला देना, भुलावे में डाल देना; मूच्छित कर देना और जो संवेदन-केन्द्र अशांति का अनुभव कराते हैं, उन संवेदन-केन्द्रों को निष्क्रिय कर देना। यह कोई समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। यह भुलावे में डाल देने वाली बात है और भुलावा कब तक चल सकता है ? वास्तविकता पर पर्दा कब तक डाला जा सकता है ? पर्दा डाल देने का मतलब है एक बार छिपा देना किन्तु आखिर पर्दा रहता नहीं। पर्दा उठता है, समस्या और प्रज्वलित बन जाती है । यह पर्दा नहीं डाला जा सकता और चेतना पर तो पर्दा डाला ही नहीं जा सकता क्योंकि चेतना तो भीतर से भी सक्रिय है, भीतर से अपना काम करती है । उस पर यह पर्दा नहीं डाला जा सकता। मानसिक अशान्ति का स्थायी प्रतिकार मानसिक अशांति का स्थायी उपचार करने के लिए समाधि के सिवाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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