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मन की शान्ति
विक्षेप की दिशा : चैतन्य की विशा
जीवन की दो दिशाएं हैं । एक दिशा है विक्षेप की ओर जाने की तथा दूसरी दिशा है चैतन्य की ओर जाने की । आदमी जैसे-जैसे बाहर में गया, उसका आकर्षण जैसे-जैसे बाहर में बना, चंचलता बढ़ती चली गई, पागलपन बढ़ता चला गया । बाहर में जाने का अर्थ है - चंचलता बढ़ाना, पागलपन बढाना । जिन लोगों ने केवल बाहर जाने का अर्थ ही समझा है, चंचलता को बढ़ाने का अर्थ ही समझा है, उन लोगों ने सचमुच दुनिया को अशान्त बनाया है, पागल बनाया है । आज मानसिक पागलपन बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है । मैंने एक भारत के डाक्टर का सर्वेक्षण पढ़ा, जो दस वर्ष पहले हुआ था। डाक्टर ने बताया कि जिस नगर में मानसिक पागलों की संख्या आठ सौ पचास थी, आज वह संख्या चौदह हजार तक पहुंच गई हैं । यह स्थिति भारत की है । उन देशों की नहीं है, जहां चंचलता को बढ़ाने वाले साधन बहुत बढ़ गए हैं और चंचलता जहां विक्षिप्तता के बिन्दु पर पहुंच रही है, विक्षेप बढ़ रहा है। वहां की संख्या के संदर्भ में भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि भारत एक गरीब देश हैं, विकसित देश नहीं है ।
दो पहलू
गरीब होना एक अभिशाप भी है, गरीब होने के कुछ लाभ भी हैं । हर वस्तु के दो पहलू होते हैं । बुरा परिणाम होता है तो साथ-साथ अच्छा परिणाम भी होता है । बुरा परिणाम यह है - गरीबी के कारण अनैतिकता बहुत बढ़ रही है । किन्तु साथ-साथ गरीबी के कारण पागलपन की मात्रा उतनी नहीं बढ़ रही है जितनी समृद्धि के बाद बढ़ती है । समृद्धि के बाद जो चंचलता बढ़ती है, अतृप्ति बढ़ती है, वह पदार्थ से नहीं मिटती । उसे मिटाने के लिए कोई और बात चाहिए, समाधि चाहिए । समाधि का सूत्र उपलब्ध नहीं होता है तो पागलपन का दरवाजा चौड़ा हो जाता है । एक दो आदमी नहीं, एक साथ हजारों-हजारों आदमी उस दरवाजे में जा सकते हैं, प्रवेश कर सकते हैं । बहुत चौड़ा रास्ता हो जाता है ।
जब तक वैराग्य का अभ्यास नहीं किया जाएगा, मानसिक अशान्ति की समस्या सुलझ नहीं पाएगी। वैराग्य के बिना, पदार्थों के प्रति तीव्र
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