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चित्त और मन
आता है जहां दिशा उद्घाटित हो जाती है। कोई साधक चाहता है कि वह अज्ञात देश को जाने । वह प्रयोग करता है। जिस दिशा में वह देश स्थिति है, उस दिशा में वह अपनी प्राणधारा को प्रवाहित करना प्रारंभ कर देता है। पूरी तन्मयता और एकाग्रता के साथ वह ऐसा करता है। कुछ दिनों तक यह प्रयोग चलता है। संकल्प जब पूर्ण स्थिर हो जाता है तब एक दिन वह अज्ञात देश उसके लिए ज्ञात बन जाता है । वह अज्ञात स्थान साक्षात् हो जाता है।
एक है ज्ञात स्थान को जानना । व्यक्ति ने अपना घर देखा है, जाना है। वह घर से हजारों मील दूर चला गया। वह मन को एकाग्र कर प्राणधारा को उस घर की दिशा में नियोजित करे । कुछ ही समय के पश्चात उसे अपना घर प्रत्यक्षतः दिखने लग जाएगा। वहां की सारी हलचल प्रत्यक्ष हो जाएगी। प्रश्न है नियोजन का
जो व्यक्ति परम की साधना में लग जाता है, वह आत्मा की साधना में लग जाता है, उसके लिए आत्मा ही ध्येय है, आत्म-साक्षात्कार ही उद्देश्य है। वह अपनी सारी ऊर्जा और प्राणशक्ति को एक ही दिशा में, आत्मा की खोज में, प्रवाहित कर देता है, बीच में नहीं रुकता। यह वास्तविकता हैजो भी अध्यात्म योगी हुए हैं, आत्मा की खोज करने वाले हुए हैं, वे बहत चामत्कारिक नहीं हुए हैं। चमत्कारों के जाल में वे कभी नहीं फंसे। जो अध्यात्म योगी नहीं हुए हैं, इस मध्यवर्ती मार्ग में रहे हैं, इसकी यात्रा की है, वे चामत्कारिक हुए हैं। उनका ध्येय सिमटकर इतना-सा रह गया-वे अनुग्रह और निग्रह की शक्ति को प्राप्त कर सकें। वरदान और शाप की शक्ति को प्राप्त करने में ही उन्होंने अपनी साधना नियोजित की। किसी का भला कर देना और किसी का बुरा कर देना-यही सफलता का मानदण्ड बन गया। ऐसे लोग सामान्य जनता में आतंकउत्पन्न कर देते हैं । भय से प्रताड़ित लोग ऐसे व्यक्यिों के भक्त बन जाते हैं। किन्तु यह सच है कि जिन्होंने चमत्कारों में पड़कर, प्रदर्शन को ही सब कुछमान लिया, उन लोगों को दुःख का जीवन जीना होता है। वे व्यक्तिगत जीवन में बहुत दु:खी होते हैं। ऐसे लोग अन्त समय में ऐसा कहते हुए सुने गए हैं-कोई भी इस मार्ग को न अपनाए। यह निकृष्ट मार्ग है।'
ठीक यही दशा उन लोगों की है जो तुच्छ शक्तियों के लिए अपनी मानसिक शक्ति नियोजित करते हैं। वे छोटी-छोटी सिद्धियों में उलझकर अपने महान् लक्ष्य को भुला बैठते हैं। अंतर है शक्ति के उपयोग का
यह भी रुचि का प्रश्न है । कुछेक व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर चलने
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