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________________ व्यक्तित्व के विविध रूप जहाँ शस्त्र हैं, वहाँ अभय कैसे रहा जा सकता है? अगर अभय होते, तो शस्त्रों की कभी आवश्यकता नहीं होती। एक योद्धा कभी अभय नहीं हो सकता, आतंकवादी कभी अभय नहीं हो सकता और अभय कोई जड़ भी नहीं हो सकता। जड़ में खतरे का भान नहीं होता। अभय वह होता है, जिसमें बुद्धि का विकास होता है। अभय की पहली शर्त है बौद्धिक विकास । जो बुद्धिहीन हैं, वे अभय नहीं हैं, क्योंकि उनमें चेतना विकसित ही नहीं है। इस तथ्य में भी अब संशोधन करना चाहिए। कुछ मनुष्य खतरे से अनजान होते हैं, परन्तु अनेक छोटे प्राणी खतरे को बहुत पहले भाँप जाते हैं। यह प्राणी में अतीन्द्रिय चेतना होने का प्रभाव है। ज्वालामुखी फटने वाला है, सारे प्राणी वहाँ से चले जाएंगे। उनके भागने के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि ज्वालामुखी फटने वाला है। वेकस्टर ने वनस्पति पर बहुत प्रयोग किए। इस संदर्भ में उनकी एक पुस्तक है 'मॉडर्न रिसर्च'। उन्होंने सात व्यक्तियों को भेजा, पर पौधे शांत बने रहे। फिर उस व्यक्ति को भेजा, जिसकी मनोवृत्ति पौधों को तोड़ने-मोड़ने की थी। वह व्यक्ति जैसे ही पौधों के सामने आया, गेल्वेनोमीटर की सुई घूमने लग गई। पोलिग्राफ पर भय जताने वाली रेखा अंकित हो गई। भय को भाँपने की बुद्धि हर छोटे प्राणी में होती है। त्रस्त की गति ही यह बता देती है कि वे भयभीत होते हैं। 'त्रसिताः पलायिंता:'-वे भय से पलायन कर जाते हैं। पलायन एक प्रवृत्ति है। उसका संवेग है भय। भय और अभय की आवश्यकता ... हर व्यक्ति में भय और अभय, दोनों ही होते हैं। अभय आवश्यक है, तो भय भी आवश्यक है। प्रश्न है, कितना डरना चाहिए और कितना नहीं डरना चाहिए? कब डरना चाहिए और कब नहीं डरना चाहिए? कैसे डरना चाहिए और कैसे नहीं डरना चाहिए? कहा गया है-'भय बिनु प्रीति न होय ।' यह भी एक सच्चाई है। प्रीति भय के बिना नहीं होती। भय निकल गया और चेतना जागी नहीं तो व्यक्ति उद्दण्ड, आक्रामक बन जाएगा। हमारे संवेग भी नियामक होते हैं। समाज भय के आधार पर चलता है, राज्य भय के आधार पर चलता है, क्योंकि भय नियामक होता है। इसका निदर्शन है यह श्लोक-- हर डर गुरु डर गांव डर, डर करणी में सार। तुलसी डरै सो ऊबरै, गाफिल खाबै मार।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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