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________________ जो सहता है, वही रहता है जान लिया ?" व्यक्ति बोला, 'तेरे लक्षणों से पता चल रहा है कि तू मूर्ख है । ' नाम से कोई निरपेक्ष सत्य नहीं है। परम सत्य भी नहीं है । वह एक सापेक्ष सत्य है, सत्य का एक छोटा सा अंश है । उसी आधार पर सारा नामकरण होता है । ८० अभय कैसे बनें ? प्रत्येक व्यक्ति अभय होना चाहता है । वह सदा भय से मुक्त होने की चर्चा करता रहता है। वस्तुतः जो दूसरों को डराता है, वह डर की चर्चा करने का अधिकारी नहीं है। अभय के लिए सबसे पहले डराने की बात छोड़ें, फिर डरने की बात ही नहीं आएगी। डरो मत, अभय बनो, इसके स्थान पर यह सूत्र होना चाहिए- 'डराओ मत। यह सूत्र बनेगा तभी 'न डरो' का सूत्र मजबूत भगवान महावीर ने दोनों बातें एक साथ कही- 'णो भायए नो विय भावियप्पा' । डरो मत और डराओ मत। इन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता । बुद्धि और अभय राजर्षि ने राजा संजय से कहा, 'मैं अभयदान देता हूँ, पर तुम भी दूसरों को मत डराओ ।' यह अभय का बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है, जहाँ व्यवहार का जीवन है, सामाजिक और संस्थागत मूल्यों का जीवन है, वहाँ बहुत बार डरना पड़ता है और डरना जरूरी भी हो जाता है । हम डरें तो बुद्धिमानी के साथ डरें। बुद्धि और डर एक बात है। जड़ और डर दूसरी बात है । मूर्ख वह होता है, जिसमें मूर्खता होती है और जड़ वह होता है, जो अपने खतरों से भी अनजान रहता है। न मूर्खता, न जड़ता, किन्तु बुद्धि के साथ डरें। चूल्हा जलता है तो आदमी उसमें हाथ नहीं डालेगा। चूल्हा बुझा हुआ है तो वह हाथ से उसे साफ कर देगा, क्योंकि उसमें समझ होती है। बुद्धि और अभय, बुद्धि और भय, ये दोनों बातें साथ होनी चाहिए। हम जड़ नहीं हैं कि खतरों से अनजान रहें । बुद्धि और भय कहा जाता है कि एक आतंकवादी नहीं डरता, सैनिक भी नहीं डरता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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