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________________ जो सहता है, वही रहता है भय का कारण ___कब किससे डरना चाहिए और कब नहीं डरना चाहिए? इसमें विवेक और बुद्धि की जरूरत है। जहाँ मूढ़ात्मा विश्वस्त है, वहाँ व्यक्ति के लिए उससे बड़ा कोई भय और खतरा नहीं होता। जो भयभीत है, उसके लिए अभय का कोई दूसरा स्थान नहीं है। ___आदमी धन में बहुत विश्वास करता है। वह सोचता है कि धन काम आएगा, पर पता नहीं वह उसके काम आएगा या औरों के काम आएगा। जो अभय देने वाला स्थान है, उससे वह घबराया हुआ रहता है और जो भय का स्थान है, उसे अभय का स्थान मान लेता है। यह विपर्यय भय का सबसे बड़ा कारण है। अभय है आत्मस्थ अभय को छोड़कर महावीर की व्याख्या नहीं की जा सकती। महावीर को छोड़कर अभय की व्याख्या नहीं की जा सकती। अभय का दूसरा कारण बनता है, आत्मस्थ हो जाना । जहाँ बुद्धि का विकास बढ़ता है, वहाँ आदमी झूठे भयों से मुक्त होता चला जाता है। माताएँ बच्चों को अपने स्वार्थ के लिए हौवा का डर बहुत दिखाती हैं, परिणामतः बच्चे कमजोर और डरपोक बन जाते हैं। यदि किसी पचास वर्ष के आदमी से कहा जाए कि भीतर मत जाना, हौवा बैठा है, तो वह बिल्कुल नहीं डरेगा, क्योंकि उसमें बुद्धि का विकास हो गया है। जो आत्मस्थ हो जाता है, संतुलित बन जाता है, वह भी कभी नहीं डरता। असंतुलन भय पैदा करता हैं। क्रोध आया, भय पैदा हो जाएगा, झूठ बोला, भय पैदा हो जाएगा। भय परिणाम है। माया और भय का संबंध है। आज अनेक व्यक्तियों को छोटी अवस्था में हार्टफेल हो जाता है। इसके दो कारण हैं लोभ और भय । भय से आदमी का हार्ट कमजोर होता चला जाएगा। जहाँ आत्मस्थता नहीं आती, वहाँ भय बना रहता है। भयग्रस्त कौन? अभय के संदर्भ में कहा गया कि जो अतिमात्र भय है, पहले उसे क्षय करना सीखो। पहले यह बात न करो कि सीधे अभय के बिंदु पर पहुँच जाएँ। भय का सर्वथा क्षय बड़ा कठिन है। कितना डरना चाहिए या कितना नहीं डरना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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