________________
जीवन में परिवर्तन
४७
- करके देखें
-
RASHAINHIpindowserature- MARWA
RAINIRVINDIAsalese
दीर्घ श्वासप्रेक्षा का प्रयोग-वृत्तियों के परिष्कार हेतु। सहज आसन, आंखें कोमलता से बंद धीरे-धीरे लम्बा श्वास लें और धीरे-धीरे श्वास छोड़े। श्वास के कम्पन नाभि तक पहुंचे। श्वास लेते समय पेट की मांसपेशियां फूलती हैं। छोड़ते समय सिकुड़ती हैं। चित्त को नाभि पर केन्द्रित करें और आते-जाते श्वास का अनुभव करें। प्रत्येक श्वास की जानकारी बनी रहे। अभ्यास की निरन्तरता को बनाएं रखें। कुछ समय बाद चित्त को नाभि से हटाकर दोनों नथुनों के भीतर संधि स्थल पर केन्द्रित करें। लयबद्ध लम्बा श्वास चालू रखें। चित्त की सारी शक्ति श्वास को देखने में लगा दें। केवल श्वास का अनुभव करें। यदि विकल्प आते हैं तो उन्हें रोकने का प्रयत्न न करें। केवल द्रष्टाभाव से देखें। कुछ समय के लिए जीभ को उलटकर तालू से लगा दें। श्वास के प्रति जागरूक रहें। यह प्रयोग १० मिनट तक करें। अभ्यास से समय को बढ़ाया जा सकता है। • मंत्र का प्रयोग
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं-दोनों भृकुटियों के मध्य दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग का ध्यान करें एवं दीर्घश्वास के साथ मंत्र का मानसिक जप करें। इसका प्रतिदिन १० मिनट प्रयोग करें।
परिणाम-अंतर्दृष्टि (Third Eye) का विकास होगा। • आसन-प्राणायाम
पवनमुक्तासन-भूमि पर सीधे लेटकर श्वास भरते हुए दोनों घुटनों को मोड़कर सीने से लगाएं। दोनों हाथों से बांधते हुए नाक का स्पर्श करें। सहज अवस्था तक रुकें। फिर श्वास छोड़ते हुए गर्दन और पैरों को सीधा करें। लाभ-वायु विकृति को दूर करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org