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________________ ४२ जो सहता है, वही रहता है बताऊँगा'। जहाँ जानना और देखना होता है, वहाँ सोचना नहीं होता। जहाँ जानना और देखना नहीं होता, वहाँ सोचने की स्थिति आती है। जो परोक्ष है, अस्पष्ट है, जिसके विषय में सहसा कुछ कहा नहीं जा सकता, वहाँ सोचना होता है, चिंतन करना पड़ता है। चिंतन और चेतना सोचना मस्तिष्कीय चेतना का अंग है, इसलिए यह ज्योति का एक स्फुलिंग मात्र है, ज्योति की समग्रता नहीं है। जब दर्शन स्पष्ट होता है, प्रत्यक्ष दर्शन की स्थिति प्राप्त हो जाती है, तब चिंतन समाप्त हो जाता है। ध्यानसाधना का लक्ष्य है कि साधक प्रत्यक्ष दर्शन की अवस्था तक पहुँचे, साक्षात्कार की भूमिकाओं को प्राप्त करे। जब साक्षात्कार होता है, तब चिंतन नीचे रह जाता है और अखंड ज्ञान ऊपर आ जाता है। जब तक व्यक्ति शरीर से बंधा हुआ है, मस्तिष्कीय चेतना से जुड़ा हुआ है और अतीन्द्रिय चेतना जागृत नहीं हुई है, तब तक चिंतन करना भी आवश्यक होता है। उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता। दो प्रकार के व्यक्ति चिंतन से मुक्त होते हैं। प्रत्यक्षज्ञानी कभी चिंतन नहीं करता, अज्ञानी कभी चिंतन नहीं कर सकता। प्रत्यक्षज्ञानी को चिंतन करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि जो कुछ है, वह उसके लिए प्रत्यक्ष है। अज्ञानी या मूर्ख चिंतन करना जानता ही नहीं, उसमें चिंतन की क्षमता नहीं होती। मालिक ने नौकर से कहा, 'वनस्पति घी के दो डिब्बे हैं। बगीचे में जाकर इस घी को कहीं छिपा दो।' नौकर डिब्बे लेकर बगीचे में गया। थोड़े समय बाद आकर बोला, 'मालिक! मैंने घी तो बगीचे में छिपा दिया, अब डिब्बे कहाँ रखू?' मालिक बोला, 'अरे! घी को कहाँ और कैसे छिपाया ?' नौकर बोला, 'मैंने वृक्ष के पास एक गड्डा खोदा, घी उसमें डालकर ऊपर से मिट्टी डाल दी। घी को छिपा दिया। किसी को पता ही नहीं चल पाएगा। अब बताएँ, डिब्बे कहाँ रखू?' जो व्यक्ति सोचना जानता ही नहीं, जिसमें चिंतन की क्षमता विकसित नहीं है, वह अज्ञानी होता है। वह गड्ढा खोदकर घी को छिपा सकता है, पर खा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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