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जीवन में परिवर्तन होता है। गुरु का ज्ञान शिष्य के काम नहीं आता। पिता का पुत्र के काम नहीं आता और बड़े भाई का ज्ञान छोटे भाई के काम नहीं आता। जैसे पैसा काम आता है, वैसे ही यदि ज्ञान भी काम आता तो घर में एक ही आदमी पढ़ लेता और शेष आदमी उससे अपना काम चला लेते। फिर शायद इतने स्कूलकॉलेज नहीं होते, शिक्षण संस्थाओं में इतनी भीड़ नहीं होती। इतनी माथापच्ची भी नहीं होती। कौन पढ़ता? एक पढ़ा हुआ है, सबका काम उसी से चल जाएगा। ___ ज्ञान अपना-अपना होता है, उसी तरह संवेदन भी अपना अलग होता है। जिस घटना का संबंध पाँच व्यक्तियों से है, पाँचों व्यक्तियों पर उसकी अलग प्रतिक्रिया होगी। एक व्यक्ति एक घटना से इतना पीड़ित हो जाता है कि रोटी हराम हो जाती है, जीवन बड़ा दुःखमय हो जाता है। दूसरा व्यक्ति, जिसका संबंध भी इसी घटना से है, वह इतने में टाल देता है, 'चलो, दुनिया में ऐसा ही होता है।'
एक भाई मेरे पास आकर बोला, 'मुझ पर हर बात का बड़ा प्रभाव होता है। कष्ट का अनुभव करता हूँ। कोई भी बात हो जाती है तो सारे दिन वही दिमाग में चक्कर लगाती है। बड़ा परेशान हूँ। क्या करूँ?' मैंने कहा, 'तुम सूत्र का आलंबन लो, एक सूत्र का उपयोग करो। जो भी घटना घटे, तुम यही कहा करो कि दुनिया में ऐसा ही होता है। यह तो दुनिया का स्वभाव है। इसमें क्या नई बात है, क्या आश्चर्य है?' एक मित्र दूसरे मित्र को ठगे तो आश्चर्य होता है कि मेरे मित्र ने ही मुझे ठग लिया। अरे! तुमने सच्चाई को समझा ही नहीं, मित्र की प्रकृति को समझा ही नहीं। एक मित्र दूसरे मित्र को ठगे, इसमें कुछ भी आश्चर्य नही है। यह तो दुनिया की प्रकृति है, उसका स्वभाव है, बस बात समाप्त हो जाती है। जब हम यह मान लेते हैं कि यह होता है, दुनिया में ऐसा होता है, तो फिर कोई कठिनाई नहीं होती। जीवन के पक्ष और प्रणालियाँ
प्रत्येक व्यक्ति के संदर्भ में बहुत अंतर होता है। यह संवेदन की भिन्नता है, ज्ञान की भिन्नता है, शरीरगत पर्यायों की भिन्नता है। जन्म, शैशव, यौवन, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु सब शरीरगत होते हैं। एक व्यक्ति के शरीर में अपना
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