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________________ २४ जो सहता है, वही रहता है शैशव, यौवन, बुढ़ापा, जन्म और अपनी मौत होती है। ये सब बातें प्रत्येक में होती हैं, उसकी अपनी होती हैं और यह विभेद हमारा शरीर बनाता है । हमारे जीवन के दो पहलू बन जाते हैं - एक वैयक्तिक और दूसरा सामाजिक। जो अपना होता है, निजी होता है, वह वैयक्तिक है । हम उस दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ संक्रमण होता है, छूत की बीमारियाँ होती हैं । एक बीमारी दूसरों पर आक्रमण कर देती है। विचारों का भी संक्रमण होता है। एक आदमी के मन में एक विचार उठता है और वही विचार आगे हजारों लोगों के मन में उठ जाता है । रोग संक्रमणशील हैं और विचार भी संक्रमणशील हैं। जब संक्रमण के सूत्र से हम जुड़े हुए हैं, तो हम नहीं कह सकते कि हमारा व्यक्तित्व कोरा वैयक्तिक है । यदि केवल वैयक्तिक दृष्टि से ही चिंतन करते हैं, तो हमारा चिंतन सही नहीं हो सकता । उसका जीवन की दो प्रणालियाँ हैं - एक समाजवादी जीवन की प्रणाली और दूसरी वैयक्तिक जीवन की प्रणाली । समाजवादी प्रणाली का आग्रह है कि व्यक्ति का कोई अलग से मूल्य नहीं है। व्यक्ति पुर्जा है, एक यंत्र है, कोई स्वतंत्र मूल्य नहीं है । समाजवादी चिंतन के लोग इस बात पर इतना अतिरिक्त बल दे रहे हैं कि व्यक्ति का व्यक्तित्व ही समाप्त होता चला जा रहा है। कोई मूल्य ही नहीं रह गया जीवन का। चाहे जब गोली मार दे, चाहे जब फाँसी पर चढ़ा दे और चाहे जब उसे समाप्त कर दे । मात्र एक उपयोगिता . रह गई कि मशीन ठीक काम दे रही है तो काम लें, काम नहीं दे रही है तो बाहर फेंक दें। ऐसा होता है। जापान में पहले ऐसा होता था कि जब माँ - बूढ़े हो जाते, तो उन्हें जंगल में फेंक दिया जाता । बूढ़ा हो गया, अब किसी काम का तो रहा नहीं। आदमी तो ऐसा चाहिए, जो खूब काम कर सके। जो निकम्मा हो गया, वह हमारे किस काम का ? फिर वह चाहे माँ हो या बाप । वर्षों तक यह परंपरा चली है जापान में । बूढ़े माँ-बाप को पुत्र स्वयं जंगल में फेंक आते थे। वे सड़ते, मर जाते। कितना विचित्र दृष्टिकोण होता है मनुष्य का! केवल स्वार्थ और स्वार्थ । -बाप दूसरी ओर वैयक्तिक दृष्टिकोण की प्रबलता है । उसमें आदमी अपनी ही सोचता है । अपने ही हित की और अपने ही स्वार्थ की बात सोचता है। खुद से आगे दूसरे की बात सोचने की उसे फुर्सत ही नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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