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________________ जीवन में परिवर्तन विकास की अवस्था में जाना चाहता है, वह बहानेबाजी नहीं करता, वह प्रयत्न करता है। परन्तु कम ही लोग होते हैं, जो प्रयत्न करते हैं। गीता का एक बहुत सुंदर वचन है-'मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये।' हजारों मनुष्यों में कोई एक ऐसा निकलता है, जो सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। आप न मानें कि सिद्धि दुर्लभ होती है। हर आदमी सिद्धि को प्राप्त कर सकता है। हमारे सामने साध्य हैं, साधन हैं, तो सिद्धि हो सकती है। साध्य, साधन और सिद्धि. यह त्रिवेणी जुड़ी हुई है। इसको अलग नहीं किया जा सकता। जिस आदमी ने कोई साध्य बना लिया, ठीक साधन चुन लिया तो सिद्धि अवश्य मिलेगी। सिद्धि के लिए ज्यादा चिंता की जरूरत नहीं होती। चिंता करने की जरूरत होती है साध्य और साधन की। सिद्धि तो परिणाम है। वह तो अपने आप मिलेगी। हम परिणाम के लिए सोचते हैं, यह हमारी समझदारी नहीं है। हमें परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। अभी-अभी एक भाई मेरे पास आया। आकर बोला कि अमुक बीमारी है। क्या ध्यान करने से लाभ हो सकता है? बहुत बार यह प्रश्न आता है। मैं मन ही मन सोचता हूँ और कभी-कभी कहता भी हूँ कि यह शिविर स्थल कोई चिकित्सालय तो नहीं है? पर मानता हूँ कि जो बीमारियाँ हैं, वे यहाँ ठीक हो सकती हैं। मन ठीक है तो बीमारी भी ठीक होने लग जाती है, हो भी जाती है, और हो ही जाती है। तीनों स्थितियाँ बनती हैं। सबसे पहली बात है कि मन ठीक कैसे बने? हमारी आन्तरिक स्थिति कैसे बदले? अगर आन्तरिक स्थिति बदलती है तो बाहरी परमाणु भी बदलने लग जाते हैं। समस्या है आन्तरिक स्थिति बदलने की। हम बहुत बार बाहर कारण नहीं खोज पाते, कारण भीतर होता है। __कुत्ता मिला, आदमी दौड़ने लगा। आगे-आगे आदमी दौड़ता है और पीछे-पीछे कुत्ता दौड़ता है। ऐसा एक बार नहीं होता, बहुत बार होता है। खोजा गया कि कारण क्या है? आगे आदमी दौड़ता है और पीछे कुत्ता दौड़ता है, इसका कोई कारण तो होना चाहिए। एक वैज्ञानिक खोज हुई। बड़ी महत्त्वपूर्ण खोज हुई । वैज्ञानिकों का कहना है कि आदमी डर के मारे दौड़ रहा है। जब डर की स्थिति में होता है, तब एड्रीनल ग्रंथि बहुत सक्रिय हो जाती है। एड्रीनल का स्राव बहुत ज्यादा होने लगता है और उसकी गंध चारों तरफ फैलती है। कुत्ता तो गंध को बहुत दूर से पकड़ता है। कुत्ते जितनी प्रबल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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