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________________ २० जो सहता है, वही रहता है हमारा कोई वश नहीं । आदमी खुद को विवश अनुभव करता है और एक बहाना भी बहुत अच्छा है कि बुरा-अच्छा जो जैसा होता है, वैसा नियति से होता है, भीतर की प्रेरणा से होता है । उसमें हमारा तो कोई नियंत्रण नहीं है । क्यों दोष दिया जाए ? एक चोर को क्यों दोषी माना जाए ? एक डाकू को, लुटेरे को क्यों दोषी माना जाए ? वह बेचारा करता क्या है ? जैसी उसकी भीतरी प्रेरणा होती है, जैसा उसका भीतर का रसायन होता है, वैसा व्यवहार और आचरण उसे करना होता है, तो फिर उसे क्यों दोषी माना जाए ? उसकी विवशता है, उसके वश की बात नहीं है । यह एक बहाना मिल जाता है और बहाना खोजना तो आदमी बहुत जानता है । बहाना खोजने में तो आदमी इतना निपुण है कि हर बात में वह बहाना खोज ही लेता है । एक आदमी बैठा था। गाँव में मंदिर बन रहा था। सब लोगों ने निर्णय लिया कि मंदिर बनाना है, पर मजदूरों की जरूरत नहीं है । गाँव के सब लोग अपना श्रम लगाएँगे और मंदिर का निर्माण करेंगे। सारा गाँव मंदिर के निर्माण में जुट गया। एक आदमी निकम्मा बैठा है। दूसरे लोग पहुँचे । उन्होंने कहा, 'तुम्हें पता नहीं मंदिर बन रहा है और सबको काम करना है ! चलो, मंदिर के काम में लगें ।' वह बोला, 'क्या करूँ, सबके पेट भरे हैं और मेरा पेट खाली है। मैं कैसे काम कर सकता हूँ। भला खाली पेट वाला आदमी कैसे काम करेगा? कैसे अपनी शक्ति लगाएगा ?' लोगों ने कहा, 'बेचारा ठीक कहता है, पेट खाली है तो काम कैसे करेगा ?” श्रमिक को तो और ज्यादा खाने को चाहिए। उसे पेट भरकर रोटियाँ खिला दी। उसने डटकर रोटियाँ खाई। फिर कहा गया, चलो, काम पर चलें। वह बोला, 'मैं कैसे जा सकता हूँ? मैं तो अब काम नहीं कर सकता। पेट इतना भर गया कि काम करने की स्थिति में नहीं हूँ ।' पेट खाली है तो भी काम करने की स्थिति में नहीं है, पेट भर गया तो भी काम करने की स्थिति में नहीं है। दोनों ओर हमारे बहाने है। दाएँ, बाएँ, आगे, पीछे, चारों ओर बहाने हैं। बहाना खोजा जा सकता है, पर जो व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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