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________________ जीवन में परिवर्तन बदला जाए तो काफी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। मनुष्य ने बाहरी परिस्थिति को बदलने का भी उपक्रम किया है। बाहर के वातावरण को भी बदलने की चेष्टा की है। यदि अंधकार को नहीं बदला जाता, तो प्रकाश उपलब्ध नहीं होता। प्रकाश से रात में भी दिन हो जाता है। मनुष्य के पुरुषार्थ से ऐसा हो सकता है। मनुष्य ने बहुत प्रयत्न किए हैं। कभी पत्थरों से आग जलाई, कभी अरणी की लकड़ी से आग जलाई और कभी बिजली जलाई। साधनों के परिवर्तन से वह अंधकार को भी प्रकाश में बदल देता है। अंधकार एक परिस्थिति है। उस परिस्थिति को बदलने का प्रयास किया, प्रकाश उपलब्ध हो गया। बाहरी वातावरण को बदलने का प्रयत्न हुआ है, इसीलिए आदमी गर्मी में सर्दी की स्थिति पैदा कर सकता है। ये सारे पंखे, कूलर इसीलिए तो बने हैं कि गर्मी की परिस्थिति को बदल दिया जाए। यह हीटर इसीलिए तो बना कि सर्दी की परिस्थिति को बदल दिया जाए। यह वातानुकूलन इसीलिए तो आविष्कृत हुआ कि परिस्थिति को बदल दिया जाए, गर्मी में सर्दी और सर्दी में गर्मी। मौसम की एकरूपता बना दी जाए। यह सारा विकास बदलने का विकास है। मनुष्य ने बाहरी परिस्थितियों को बदलने में काफी प्रयत्न किया है। उसने उसे बदला है और बहुत हद तक सफल भी हुआ है। जिसकी संभावना और कल्पना नहीं थी, उस स्थिति को भी वह बदल चुका है और आगे बढ़ रहा है। दूसरा प्रश्न आता है, आन्तरिक परिस्थिति को बदलने का। बाहरी परिस्थिति के बदलाव में जितनी सफलता मिली है, उतनी सफलता आन्तरिक परिस्थिति के बदलाव में अभी नहीं मिली है। रसायनों को बदला जा सकता है। अन्तःस्रावी ग्रंथियों से जो स्राव झरते हैं, वे रसायन बदले जा सकते हैं, किन्तु उन्हें बदलने में अभी डॉक्टरों को भी सफलता नहीं मिली है। मेडिकल साइंस में यह माना गया है कि अन्तःस्रावी ग्रंथियों के स्रावों में परिवर्तन करने के पर्याप्त साधन अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं। उन्हें नहीं बदला जा सकता। भावों को नहीं बदला जा सकता, विचारों को नहीं बदला जा सकता। अभी बड़ी कठिनाइयाँ हैं। मनुष्य आन्तरिक परिस्थिति को बदलने में स्वयं को अक्षम अनुभव करता है और एक बहुत बड़ा बहाना मिल जाता है कि हम क्या करें? बुरे विचार आते हैं, पर क्या करें? यह तो नियति की बात है, बुरे भाव आते हैं, हम क्या करें? यह हमारे वश की बात नहीं। बुरी कल्पनाएँ आती हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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