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जो सहता है, वही रहता है
क्रोध की आग
वास्तव में प्रत्येक आदमी बदलना चाहता है। क्रोधी आदमी स्वयं चाहे या न चाहे, परिवार वाले अवश्य चाहते हैं कि वह बदल जाए, उसका क्रोध छुट जाए, क्योंकि वह सबको दुःख देता है। वह स्वयं दुःख को भोगता है और दूसरों को भी दुःखी बनाता है। आग स्वयं जलती है और दूसरों को भी जलाती है। आग पर कुछ भी रखो, वह उबलने लग जाता है। आग जलती है, सारे ईंधन को जला देती है। शेष केवल राख बचती है। शिविरों में पचास प्रतिशत साधक स्वयं की प्रेरणा से आते हैं और पचास प्रतिशत आसपास की प्रेरणाओं से आते हैं। लाभ उठाए हुए लोग प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जाओ, बदलो। इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर अनेक साधक आते हैं और बदल जाते हैं। परिवर्तन एवं परिस्थिति
विश्व का समूचा विकास, सभ्यता और संस्कृति का पूरा विकास, परिवर्तन का विकास है। जो जैसे हैं, वैसे ही रहें तो विकास संभव नहीं होता। मेरे सामने लोग कपड़े पहने बैठे हैं। रूई पौधे पर लगी, रूई बनी, रूई से धागा बना, धागे से कपड़ा बना, तो कपड़े पहने हुए बैठे हैं। सारा परिवर्तन हुआ है। अगर रूई को ही पहने होते तो काम बनता नहीं। धागों को तो पहना ही नहीं जा सकता। कपड़े से सर्दी रुकती है, गर्मी का बचाव होता है, वर्षा से बचा जा सकता है। इसके पीछे पूरे परिवर्तन की कहानी है। रोटी खाते हैं, पर कोरे गेहूँ नहीं चबाते। कोरे चने नहीं चबाते, रोटी बनाकर खाते हैं। पूरा परिवर्तन होता है, उसके बाद घी खाते हैं, मक्खन खाते हैं। कितनी मेहनत करनी होती है। दूध को जमाना पड़ता है। दही को बिलौना होता है, तब मक्खन मिलता है, घी मिलता है। हमारे जीवन की सारी प्रक्रिया, पदार्थ के विकास की सारी प्रक्रिया, परिवर्तन की प्रक्रिया है, बदलाव की प्रक्रिया है। जो जैसा है, वैसा नहीं रहता, हर वस्तु को बदलना होता है।
मनुष्य अपनी परिस्थिति को बदलता है और वातावरण को भी बदलता है। वातावरण को ऐसे ही नहीं छोड़ देता। परिस्थिति को जो जैसा है, वैसे ही नहीं छोड़ देता। उसे बदलने का प्रयत्न करता है, मनुष्य का पूरा पुरुषार्थ और पूरा प्रयत्न बदलने में लगा है। वह आगे बढ़ा है। यदि बाहरी परिस्थिति को न
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