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जो सहता है, वही रहता है
कार्यकर्त्ता के लिए सहिष्णुता का वज्रपंजर बनाना जरूरी है। जब तक कार्यकर्त्ता सहनशील नहीं होगा, वह धैर्य और शांति का परिचय नहीं दे पाएगा । अनेक व्यक्ति थोड़ी-सी विपरीत स्थिति आते ही अधीर और विचलित हो जाते हैं। व्यक्ति सोचता है कि अमुक व्यक्ति ने मेरा अपमान कर दिया, मैं अब सभा में जाना बंद कर दूँगा, संगोष्ठी में कभी भाग नहीं लूंगा । हमें अतीत को देखना चाहिए। अपमान किसका नहीं हुआ ?
विचार का परिष्कार
१०
समाज
कार्यकर्त्ता के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं । तिरस्कार व पुरस्कार के क्षण आते और जाते रहते हैं। इन सभी को सह लेना ही कार्यकर्त्ता की कसौटी है। कार्यकर्त्ता को सोचना चाहिए कि यह घरेलू मामला है, का प्रश्न है, यहाँ असहिष्णुता काम नहीं देगी। मधुर और मृदुभाषा से ही इन स्थितियों से बचा जा सकता है। सहिष्णुता का प्रशिक्षण व्यक्ति के विचारों का परिष्कार कर देता है । उसे मृदु और मधुर बनने की अभिप्रेरणा देता है। प्रशिक्षण का मूल्य
कार्यकर्त्ता के प्रशिक्षण के लिए इन तीन बातों पर ध्यान देना अपेक्षित है- १. परार्थ की चेतना का विकास। २. संवेदनशीलता की चेतना का विकास । ३. सहिष्णुता की चेतना का विकास।
कार्यकर्त्ता इनके प्रकोष्ठों को जागृत करने की विधि समझ सकें, तो उन्हें यह अनुभव होगा कि कुछ नया घटित हो रहा है । संवेदनशीलता, करुणा और सहिष्णुता के विकास का पथ प्राप्त हो रहा है। उपलब्धि का यह नवीन अनुभव और आत्मबोध ही कार्यकर्त्ता को सही अर्थ में कार्यकर्त्ता के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है । कार्यकर्ता प्रशिक्षण क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर प्रशिक्षण की इस साधना में ही छिपा है । हम इसका मूल्यांकन करें, प्रशिक्षण का मूल्य स्वतः स्पष्ट होता चला जाएगा ।
स्वर्णिम सूत्र
सहन करने की शक्ति का विकास होगा, तभी मैत्री का अनुभव होगा ।
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