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जो सहता है, वही रहता है समानता के हेतु ___ आज भी जातिगत भेद और घृणा भारतीय जीवनशैली के अंग बने हुए हैं। यद्यपि शहरों के वातावरण में कुछ फर्क आया है, लेकिन गाँवों में तो आज भी वही हालात हैं। कई गाँवों में आज भी हरिजनों को कुओं से पानी भरने नहीं दिया जाता, मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। उत्तर प्रदेश और बिहार में यह समस्या भयंकर है। हरिजनों की पूरी बस्तियाँ ही जला दी जाती हैं। इस स्थिति में इस सच्चाई की प्रतिष्ठा जरूरी है कि समाज में समानता आए, जातिगत भेदभाव न रहे।
समाजशास्त्रियों ने समानता का एक हेतु 'आंतरिक आकर्षण' बतलाया है। उसी के आधार पर समानता की भावना पनपती है। जहाँ संज्ञानात्मक बोध है, आंतरिक आकर्षण है, वहाँ समानता होगी। दूसरा हेतु गुणात्मक समानता है। जहाँ गुण समान होता है, वहाँ आंतरिक आकर्षण पैदा हो जाता है। समानता लाने वाला मुख्य घटक है आंतरिक आकर्षण। जातिभेद का कारण
जातिभेद मुख्यतः अहंकार के आधार पर पनपा है। जो भौमिक-जमींदार बने, उन्होंने सोचा कि एक भूमिहीन या सामान्य व्यक्ति के साथ संबंध जोड़ना, लड़की को लेना-देना, हमारे वर्ग की गरिमा के अनुरूप नहीं होगा। विवाह-शादी का संबंध-विच्छेद हो गया। वे अधिक ऊँचे बन गए, फिर रोटी का संबंध भी विच्छिन्न हो गया। धीरे-धीरे इस घृणा का विकास हुआ। आंदोलन की आवश्यकता ____हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि हिन्दुस्तान में समाज केवल एक ढाँचे के रूप में रहा, सही अर्थ में प्राणवान नहीं रहा, इसलिए यह असमानता का तत्त्व विकसित होता चला गया। पश्चिम में चार वर्ण की व्यवस्था नहीं रही, वहाँ जातिवाद की समस्या नहीं है, किन्तु अहं और घृणा कम नहीं हैं। मनुष्य के अहं को अभिव्यक्ति का अवसर मिल गया। रंग पर ध्यान अटक गया, यह गोरा है और यह काला। आज भी दक्षिण अफ्रीका में जहाँ गोरे लोग रहते हैं, वहाँ काले लोग अपना मकान नहीं बना सकते। जब तक आदमी में अहं और घृणा का भाव है, तब तक इस समस्या का समाधान
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