SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ जो सहता है, वही रहता है कोई बड़प्पन नहीं था। अहंकार का विपाक कम था। घृणा कहाँ से आती? धीरे-धीरे मनुष्य का विकास हुआ, समाज बना। केवल वस्तु और पदार्थ का ही विस्तार नहीं हुआ, वृत्तियों का भी विकास हुआ। अनेक कर्मों को उदय होने का अवसर मिला। मोहनीय कर्म को उदय होने का अवसर समाज में ज्यादा मिलता है। यदि समाज न हो तो मोहनीय कर्म का विपाक कहाँ होगा? यदि अकेला आदमी पहाड़ की गुफा में बैठ जाए, वर्षों तक वहीं जीवन बिताए, तो कौन-सा मोहनीय कर्म विपाक में आएगा? वहाँ बैठा व्यक्ति किससे प्रतिस्पर्धा करेगा? किसका लोभ करेगा? किस पर अहंकार करेगा? घृणा किससे होगी? बहुत सारी प्रकृतियाँ शांत रहेंगी। बदलने का सामर्थ्य यह हमारा ही आत्म-कर्तृत्व है कि हम निमित्तों को बचा लेते हैं, स्थितियों को भी बदल देते हैं, तो कर्म के विपाक का मंदीकरण भी कर सकते हैं। विपाक में, उदय में आनेवाला कर्म प्रदेशोदय में आकर समाप्त हो जाता है। यह आत्म-कर्तृत्व का सूत्र है-'जो विपाक में आनेवाला है, उसे प्रदेशोदय में भुगत लेना।' इस कर्तृत्व का सबसे बड़ा प्रमाण कर्म को बदलने का सामर्थ्य है। सड़कें बदली जा सकती हैं, मकान नए बनाए जा सकते हैं, पदार्थ की आकृति या प्रकृति को बदला जा सकता है, किन्तु कर्म जैसे सूक्ष्म क्षेत्र में प्रवेश करना और उसे बदल देना, कितना बड़ा कर्तृत्व है। विपाकोदय का प्रदेशोदयीकरण आत्म-कर्तृत्व का स्वयंभू प्रमाण है। असमानता की अभिव्यक्ति घृणा और अहं, इन दो तत्त्वों ने समाज में विषमताएँ पैदा की हैं। कहीं जाति को लेकर असमानता है, कहीं रंग को लेकर असमानता है। भारत में जाति के आधार पर असमानता चलती है और पश्चिमी देशों में रंग-भेद के आधार पर। किसी न किसी रूप में घृणा और अहं को अभिव्यक्ति का मौका मिल ही जाता है। एक समय भगवान ऋषभ का था, जब मानव जाति एक थी। न जाति का भेद था, न ऊँच-नीच और न छुआछूत का प्रश्न था। ऋषभ ने कार्य के आधार पर व्यवस्था का प्रवर्तन किया। प्रश्न आया, सफाई का कार्य कौन करे? भरत के पुत्र ने कहा, 'मैं करूँगा।' ऋषभ ने उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy