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जो सहता है, वही रहता है
शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है-सत्य में धृति करना। हम नियम को नहीं जानते, इसीलिए हमें सत्य में भरोसा नहीं होता, सत्य के प्रति आस्था ही नहीं जमती। जहाँ सत्य में धैर्य नहीं होता, वहाँ सहिष्णुता की बात संभव नहीं
होती।
___ कभी-कभी कुछ कार्य नियति के भरोसे छोड़ने पड़ते हैं। यह भी शक्ति का एक स्रोत है। जो आदमी केवल बुद्धि पर ही भरोसा करता है, वह लड़खड़ा जाता है। एक बिंदु ऐसा आता है, जहाँ यह सोचना पड़ता है कि चलो, जैसा होना है, वैसा होगा। इस चिंतन से व्यक्ति में ताकत आ जाती है। दूसरा स्रोत ___शक्ति का दूसरा स्रोत है-स्वयं को स्वयं का मित्र मानना । जो अपने आपको मित्र नहीं मानता, केवल दूसरों को मित्र या शत्रु मानता है, वह हमेशा कमजोर बना रहता है। मैं ही मेरा मित्र हूँ और मैं ही मेरा शत्रु हूँ, यह शक्ति के स्रोत को जगाने का सिद्धान्त है। तीसरा स्रोत ___शक्ति का तीसरा स्रोत है-स्वयं का निग्रह करना। जो अपनी इंद्रियों का, आवेशों का, मन की चंचलता का निग्रह करना जानता है, उसमें अपने आप शक्ति का स्रोत फूट पड़ता है। दूसरों को आदेश देना, ताड़ना देना, उलाहना देना, ये काम कोई भी व्यक्ति कर सकता है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया गया पहले अपना निग्रह करो, इससे एक बड़ी ताकत पैदा होगी, समस्याओं का समाधान मिलेगा। चौथा स्रोत
शक्ति का चौथा स्रोत है आदान का निषेध। महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि प्रत्येक बात को सहसा मत स्वीकारो। पहले सोचो, क्या मैं इसे स्वीकार करूँ? क्या इसे स्वीकार करना उचित है ? यह सब सोचकर जो अयोग्य लगे, उसे अस्वीकार कर दो।
सम्राट विक्रमादित्य एक बार बहुत गरीबी का जीवन जी रहे थे, समस्या से ग्रस्त थे। विक्रमादित्य का मित्र था भट्टमात्र । दोनों ने निश्चय किया कि हम देशाटन करें, कहीं ऐसा शक्ति का स्रोत खोजें, जिससे निर्धनता मिट जाए। वे
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