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जो सहता है, वही रहता है
होता है और उसके लिए शक्ति का जो प्रयोग किया जाता है, उस शक्ति का नाम है उत्साह ।
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पराक्रम- अधोलोक चिंता ।
एक व्यक्ति जिस स्थान पर बैठा है, उसे आस-पास की चीजों को जाना है, उसके लिए शक्ति का जो प्रयोग होता है, वह है पराक्रम ।
चेष्टा - तिर्यग्लोक चिंता ।
जब नीचे की चीजों को जानना होता है, तब शक्ति का स्वरूप होता है चेष्टा । जहाँ अंधकारमय स्थान है, वहाँ चेष्टा का प्रयोग होता है ।
शक्ति- परमतत्त्व चिंता ।
ऊपर को जानना, तिरछी चीज को जानना सरल है, किन्तु परम तत्त्व का ज्ञान कठिन है। एक स्थान पर बैठे-बैठे परम तत्त्व को जानना है और उसके लिए जो प्रयत्न किया जाता है, वह है हमारी शक्ति ।
सामर्थ्य-सिद्धायतन एवं सिद्धस्वरूप चिंता ।
निर्णीत स्थान से बैठे-बैठे सिद्धों के साथ सम्पर्क स्थापित करना और उसके लिए हम जो प्रयत्न करते हैं, वह है हमारा सामर्थ्य |
शक्ति की पहचान
अनेक लोग प्रश्न पूछते हैं, क्या महावीर और देवर्द्धिगणि के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है? क्यों नहीं हो सकता ? हमारे भीतर प्रचुर शक्ति है । हमारे भीतर वैक्रिय की शक्ति है, आहारक की शक्ति है। हमारे मन की शक्ति भी कम नहीं है। मनोवर्गणा के पुद्गल पूरे लोक में फैल जाते हैं, पर हम अपनी शक्ति को पहचानते नहीं हैं । शक्ति का होना जितना कठिन नहीं है, उतना कठिन है शक्ति को पहचानना, शक्ति के स्रोतों को जानना, शक्ति के स्रोतों का उपयोग करना ।
पहला स्रोत
शक्तिशाली ही सहिष्णु बन सकता है। जो सहिष्णु होता है, सहना जानता है, वही अपने अस्तित्व को बनाए रख सकता है। अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सहना जरूरी है, सहने के लिए शक्तिशाली होना जरूरी है और शक्तिशाली होने के लिए शक्ति के स्रोत को जानना एवं उसका उपयोग होना जरूरी है ।
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