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________________ १४८ जो सहता है, वही रहता है आचारांग सूत्र का एक सूक्त है-'जो एक को जानता है, वह सबको जानता है। जो सबको जानता है, वह एक को जानता है' जे एगं जाणई से सव्वं जाणई। जे सव्वं जाणई से एगं जाणई।। अध्यात्म की खोज भौतिक पदार्थ की खोज किए बिना अधूरी रहेगी। इसी प्रकार भौतिक पदार्थ की खोज अध्यात्म की खोज के बिना अधूरी रहेगी। एक भौतिकशास्त्री को यदि एक परमाणु का सर्वथा ज्ञान करना है, तो वह आत्मा या चेतना को जाने बिना उसे सर्वथा नहीं जान सकता। ठीक इसी प्रकार आत्मविज्ञानी भौतिक पदार्थ को जाने बिना आत्मा को सर्वथा नहीं जान सकता। अनेकांत दृष्टि द्वैतवादी दार्शनिकों ने चेतन और अचेतन, दोनों के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया। उन्होंने केवल आत्मा की ही खोज नहीं की, पदार्थ की भी खोज की। चेतन और अचेतन, दोनों के संबंध की भी खोज की। इसलिए पूर्ण सत्य को समझाने वाली हमारी भाषा होगी, जहाँ हम अध्यात्म विज्ञान का प्रयोग करते हैं, वहाँ भौतिक विज्ञान उसी की पृष्ठभूमि में छिपा हुआ है और जहाँ हम भौतिक विज्ञान का प्रयोग करते हैं, वहाँ अध्यात्म विज्ञान उसकी पृष्ठभूमि में छिपा हुआ है। दोनों को सर्वथा अलग नहीं किया जा सकता, यह अनेकांत दृष्टि की समर्थता है। अद्वैतवादी दार्शनिकों ने भी द्वैत को सर्वथा नकारा नहीं। चेतन्याद्वैत को स्वीकार करने वाला वेदांत भी पदार्थ को सर्वथा अस्वीकार नहीं करता। जड़ाद्वैतवादी चार्वाक भी चेतना को सर्वथा अस्वीकार नहीं करता। सत्य की खोज केवल अध्यात्म विज्ञान और केवल भौतिक विज्ञान के आधार पर जीवन की व्याख्या नहीं की जा सकती। अप्पणा सच्चमेसेजा-यह सत्य की खोज का महामंत्र है। दूसरों द्वारा खोजे हुए सत्यों अथवा नियमों का उपयोग करना मनीषा की परम्परा है। किन्तु स्वयं सत्य की खोज किए बिना दूसरों द्वारा खोजा हुआ सत्य हृदयंगम नहीं होता। हम दूसरों द्वारा खोजे हुए सत्य पर विराम न लगाएँ। अपने द्वारा खोजा हुआ सत्य उसके साथ जोड़कर सत्य के शोध की परम्परा को आगे बढाएँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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