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________________ प्रकृति एवं विकृति हैं। यह बात समझ में आ जाए तो महत्त्वपूर्ण सत्य उपलब्ध हो जाए । अलग अनुभूति पर वस्तुतः दुःख का संवेदन आंतरिक है। इसका संबंध केवल कर्म से है । वेदनीय कर्म से इसका संबंध है या इससे जुड़े मोहनीय कर्म से संबंध है, किन्तु घटना का किसी से संबंध नहीं है। उसे कोई भी पैदा कर सकता है । वर्षा होती है और ठंडी हवा चलती है। इसका सबके साथ संबंध है। उससे एक व्यक्ति को सर्दी लगती है और दूसरे को आनंद अनुभव होता है । घटना तो एक है, अनुभूति है अलग-अलग । प्रश्न है, घटना समान होने पर भी अनुभूति में अंतर क्यों? शरीर की प्रकृति का अंतर है या अपने संवेदन का अंतर ? एक घटना होने से एक व्यक्ति तो रोने लग जाता है और इसी घटना से प्रभावित एक व्यक्ति कहता है कि कोई बात नहीं, मुझे गहराई में जाना चाहिए। इन बाह्य प्रकोपों से मुक्त रहना चाहिए। एक ही घटना से एक व्यक्ति क्रोधित होता है और दूसरा अन्तर्मुखी हो जाता है, जागरूक बन जाता है। अगर सारा भार परिस्थितियों और निमित्तों पर डाल दें, तो उत्तरदायित्व किसका होगा ? क्या उत्तरदायित्व परिस्थिति वहन करती है ? वह उत्तरदायित्व का भार नहीं ओढ़ती । सारा उत्तरदायित्व व्यक्ति का है, यह अध्यात्म का बहुत बड़ा सत्य है । इसका जितना - जितना साक्षात्कार होता है, उतना ही व्यक्ति सुख-दुःख से परे होता चला जाता है । स्वस्थ जीवन की शैली अध्यात्म और विज्ञान के बीच संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है। इनके बीच विभाजन की रेखा खींचना एकपक्षीय दृष्टिकोण है। ये दोनों सत्य की खोज के दो विशिष्ट आयाम हैं। सत्य की खोज में सबसे बड़ी बाधा है एकांगी दृष्टिकोण | महावीर ने कहा- 'अनेकांत का दृष्टिकोण अपनाए बिना सत्य के शोध की दिशा में हम बहुत आगे नहीं बढ़ सकते।' अनेकांत के पहलू अनेकांत के दो पहलू हैं - निश्चयनय और व्यवहारनय । अस्तित्व की खोज की पद्धति का नाम निश्चयनय है । अस्तित्व के परिवर्तनशील रूपों की खोज की पद्धति का नाम व्यवहारनय है । द्रव्य की समग्रता अस्तित्व और उसके परिवर्तनशील रूप, दोनों के समन्वय से ही जानी जा सकती है। I Jain Education International For Private & Personal Use Only १४७ www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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