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________________ १४६ जो सहता है, वही रहता है आत्मदर्शन की भूमिका जब हम केवल निमित्तों पर ही अटक जाते हैं, भीतर के स्रोत तक नहीं जाते, समस्या का समाधान नहीं होता। शायद इसलिए स्थविरकल्पी को अधिक महत्त्व दिया गया। स्थविरकल्पी सबके साथ रहकर अपना नियंत्रण करता है। उस स्थिति में अनुशासित रहकर शांत सहवास करता है, जितेन्द्रिय रहता है, यह बड़ी साधना है। अकेला जंगल में रहकर साधना करने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है शहर में रहकर साधना करना । एक साधक ने बीस-पच्चीस वर्ष हिमालय में रहकर साधना की। उसके बाद आश्रम में आकर बैठा तो लड़ाइयाँ करने लगा। साधना की कसौटी होती है समुदाय में। ___अनाथी मुनि ने कहा, 'मैं वहाँ पहुँच गया हूँ, जिसे उपादान की भूमिका कहें, निश्चय की भूमिका या आत्मदर्शन की भूमिका कहें। यह वह भूमिका है, जहाँ आनंद का स्रोत मिलता है, ज्ञान और शक्ति का स्रोत भी मिल जाता है। मझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? घर क्यों छोड़ना चाहिए? पेड़ के नीचे अकेला क्यों खड़ा होना चाहिए? यह मैंने देख लिया। इस कर्तव्य का निर्माण मैंने स्वयं किया है, मेरे संकल्प की स्वतंत्रता ने किया है। मेरा संकल्प और स्वतंत्रता यह करा रहे हैं और मैं जानता हूँ कि अपने कृत का स्वयं उत्तरदायी हूँ।' घटना और संवेदन हम सुख और दुःख का आरोपण भी दूसरों पर कर देते हैं। हमारा सारा ध्यान इसी पर अटका हुआ है। कोई घटना घटती है, तत्काल मन में आता है कि उसने ऐसा कर दिया, उसने ऐसा कह दिया। कोई निमित्त होता ही नहीं है, ऐसी बात नहीं है। अनेकांतवाद को मानने वाला निमित्तों को अस्वीकार नहीं करेगा। निमित्त हो सकते हैं, पर निमित्त केवल घटना प्रस्तुत कर सकता है, सुख-दुःख नहीं दे सकता। सुख-दुःख का संवेदन होना एक बात है और सुखदुःख की घटना पैदा कर देना बिलकुल दूसरी बात है। मलेरिया के कीटाणु मलेरिया पैदा कर सकते हैं। यक्ष्मा के कीटाणु यक्ष्मा पैदा कर सकते हैं। ये कीटाणु या वायरस एक बाहरी निमित्त पैदा कर सकते हैं। प्रशंसा का एक शब्द अहंकार को जगा सकता है। हम इस सच्चाई को समझें कि बीमारी होना एक घटना है और सुख-दुःख भोगना दूसरी बात है। क्या यह संभव है कि बीमारी हो पर दुःख न हो? यही तो अध्यात्म है, बीमारी है, पर दुःख नहीं है, दुःख का संवेदन नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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